Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 59
________________ ५२ नवतत्त्व : आधुनिक संदर्भ धारणा है, वह भिन्न प्रकार की है। कुछ दार्शनिक मानते हैंजो अनुग्रह और निग्रह करता है, जो भाग्य विधाता है, जो न्याय करता है, अन्यायी को दण्ड देता है, वह परमात्मा है । किन्तु जैन दर्शन का परमात्मा न अनुग्रह करना जानता है । न निग्रह करना जानता है, वह केवल अपने आप में रहता है । परमात्मा प्रश्न है - स्थूल नियमों में जीने वाला इन सूक्ष्म नियमों में कैसे विश्वास करेगा ? स्थूल जगत् में परमात्मा उसे माना जाता है, जिसमें नेतृत्व के दोनों गुण हों - अनुग्रह करना और निग्रह करना, न्याय को प्रोत्साहन देना और अन्याय का प्रतिकार करना । जैन दर्शन का परमात्मा नेतृत्व के गुण से भी रहित है । फिर कोई आदमी ऐसे परमात्मा की पूजा और भक्ति क्यों करेगा? जो उदासीन, मध्यस्थ या तटस्थ है, उससे व्यक्ति का क्या हित सधेगा ? 1 विशुद्ध आत्मा ईश्वर के साथ, परमात्मा के साथ जो कर्तृत्व की बात जोड़ी गई है, वह बड़ी विवादास्पद है । हम जिसे ईश्वर या परमात्मा मानें और उसके साथ कर्तृत्व को जोड़ें, यह बड़ा अटपटा-सा लगता है । जहां ईश्वर के साथ कर्तृत्व को जोड़ा, वहां हमने ईश्वर को अपनी भूमिका पर उतार दिया, एक सामान्य आदमी बना दिया। ईश्वर एक विशुद्ध आत्मा है, राग-द्वेष मुक्त आत्मा है । उसका आसन ऐसा होना चाहिए कि वह सबके लिए समान हो और सब उसके लिए समान हो । जिसके ज्ञान - दर्शन पर कोई आचरण नहीं रहा, जिसके कार्य में कोई विघ्न और बाधा नहीं रही, जिसे विश्व का कोई तत्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only • www.jainelibrary.org

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