Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 19
________________ नवतत्त्व : आधुनिक संदर्भ वर्गणाएं आठ हैं- पांच शरीर की, एक भाषा की, एक मन की और एक श्वासोच्छ्वास की। जीव और पुद्गल के संबंध को टिकाने वाला बिन्दु हमें ज्ञात है । वह है आश्रव योग-मन, वचन और शरीर की प्रवृत्ति। प्रश्न दुःख को रचना का __ एक प्रश्न है-दुःख कहां से आ रहा है ? जीव का लक्षण है--- उपयोग, ज्ञान और चेतना । जीव चैतन्यमय है। चैतन्य का स्वभाव दुःख नहीं है । उसका स्वभाव है- शक्ति, दर्शन और आनंद । जब आनद चैतन्य का स्वभाव है तब दुःख कहां से आया ? एक समाधान दिया गया-ईश्वर ने दुःख बना दिया ताकि व्यक्ति प्रमाद में न रहे, भूलें न करे किन्तु जब तक हम दुःख और अशुभ की जैविकीय स्तर पर चर्चा नहीं करेंगे तब तक दु:ख को बात समझ में नहीं आएगी। दुःख की रचना न ईश्वर ने की है और न ही जागरूक रहने के लिए दुःख की रचना की गई है। दुःख की रचना संबंध के साथ जुड़ी हुई है । जीव और पुद्गल के संबंध की परिणति है-सुख और दुःख । योग के द्वारा जो लिया जा रहा है, वह अच्छा भी है, बुरा भी है, शुभ भी है, अशुभ भी है । सुख और दुःख, पुण्य और पाप- दोनों हमारी प्रवृत्ति के द्वारा आ रहे हैं । जैसी हमारी प्रवृत्ति होती है वैसा ही उसका परिणाम आता है। हमारी प्रवृत्ति शुभ होती है तो आश्रव पुण्य का होता है और हमारी प्रवृत्ति अशुभ होती है तो आश्रव पाप का होता है। क्या आत्मा शुद्ध है ? प्रश्न हो सकता है । जब ज्ञाता आत्मा चैतन्यमय है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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