Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 30
________________ स्वतंत्र भी बंधा हुआ है २३ प्रणालियों को समझ लें तो जीवन की व्याख्या करने में कोई कठिनाई नहीं होगी । नैतिकता का आधार केवल बाहर के व्यवहार और आचरण के आधार पर व्यक्तित्व की व्याख्या हो तो पग-पग पर नैतिकता के टूटने का अवसर बना रहता है । लोग कहते हैं - अमुक व्यक्ति ने इतनी बुराइयां कीं, स्मगलिंग की और वह बड़ा आदमी बन गया । अमुक आदमी ने रिश्वत ली, पैसे वाला बन गया । ईमानदारी की बात करने वाला गरीब रह जाता है, रोटी की समस्या से जूझता रहता है । यह नैतिकता को तोड़ने के लिए प्रेरित करने वाला उदाहरण है । जब तक आश्रव और बंध की प्रक्रिया को नहीं समझा जाएगा तब तक नैतिकता और चरित्र की बात समझ में नहीं आएगी। जब तक आस्रव और बंध को नैतिकता का आधार नहीं माना जाएगा तब तक नैतिकता का अस्तित्व ही नहीं बन पाएगा । बाहरी जगत् के आधार पर कोई व्यक्ति नैतिक क्यों बनेगा ? इस दृश्य जगत् में वे व्यक्ति ज्यादा अच्छा जीवन जीते हैं जो अनैतिकतापूर्ण आचरण करते हैं । इस आधार पर व्यक्ति नैतिक बनना पसन्द ही नहीं करता । नैतिकता का आधार बनता है आश्रव और बंध । इसका अर्थ हैं - आज आदमी जो आचरण कर रहा है, उसके परिणाम का उसे पता नहीं है किंतु जिस दिन वह विपाक में आएगा, हो सकता है कि मनुष्य उस समय मनुष्य ही न रहे । यह है कर्म और बंध का सिद्धांत । चतुष्कोण जीवन का एक पहलू है बंध | हम बंधे हुए हैं और बांधने का जो चतुष्कोण है, वह है-आस्रव, बंध, पुण्य और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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