Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 35
________________ २८ नवतत्त्व आधुनिक संदर्भ कर्म का प्रभाव : निदर्शन हम दूसरा उदाहरण लें। दो व्यक्तियों ने भागीदारी में व्यापार किया। लाभ की स्थिति में भी घाटा लगने लगा। घाटा निरन्तर बढ़ता चला गया। एक भागीदार ने सोचा-मुझे हट जाना चाहिए। उसने अपनी भागीदारी समाप्त कर दी। दुकान केवल एक व्यक्ति के हिस्से में रह गई। वह मालामाल हो गया। इसका कारण क्या है ? वही दुकान है, वही परिस्थिति है किन्तु घाटा ही नहीं मिटा, धन बरस पड़ा। इसका हेतु क्या है ? अतीत में जाने पर पता चलेगा- अंतराय कर्म के बंध के कारण ऐसा हुआ। एक व्यक्ति ने अंतराय कर्म का बंध किया, दूसरों के कार्य में बाधाएं ही बाधाएं डालों । वे परिपक्व होकर उसकी प्रतिक्रिया के रूप में प्रस्तुत हो गई। व्यक्ति को लगता है - जो भी करता हूं, उसमें विघ्न ही विघ्न आते हैं, हर कार्य उलटा होता है । यदि यह बात समझ में आए तो आदमी वर्तमान जीवन में किसी के सामने विघ्न और बाधाएं उपस्थित करना नहीं चाहेगा, उसका आचार बदल जाएगा। प्रश्न आचार की अवधारणा का हमारे वर्तमान आचरण और व्यवहार के पीछे एक शृंखला है। उसे समझने पर ही आचार का निर्धारण संभव बन पाएगा। आचारशास्त्र के निर्धारण में अतीत और वर्तमानदोनों की अनुभूतियों को एक साथ संयोजित किया जाए तभी आचार की सम्यक् व्याख्या हो सकती है। हमारा आचार कैसा होना चाहिए, उसकी अवधारणा केवल वर्तमान के आधार पर नहीं हो सकती । वर्तमान में व्यक्ति को आत्म-प्रशंसा और पर-निंदा करना अच्छा लगता है, किन्तु उसका परिणाम क्या होगा? इस पर यदि विचार करें तो न आत्म-प्रशंसा अच्छी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66