Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 54
________________ ४७ मनोवृत्ति को बदला जा सकता है साधक तत्त्व प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान, व्युत्सर्ग आदि तपस्या के सारे प्रकार उदात्त जीवन जीने के लिए आवश्यक हैं । ये सब शोधन और निरोध के साधन हैं । यदि हम इनके प्रति जागरूक बन जाएं तो जीवन की सारी धुरी ठीक घूमने लग जाती है । जागरूकता का साधन है-ध्यान और एकाग्रता। नव तत्त्वों में संवर और निर्जरा-ये दोनों तत्त्व साधना की दृष्टि से अत्यन्त उपादेय हैं, महत्त्वपूर्ण हैं। बाधक तत्त्व चार हैं -अजीव, पुण्य, पाप और बंध । ये चारों आध्यात्मिक विकास में बाधक बनते हैं । हम साधना के साधक-तत्त्वों का विमर्श करें। प्रक्रिया संवर को साधना का एक साधक तत्त्व है-संवर । संवर के पांच प्रकार हैं -सम्यक्त्व, व्रत, अप्रमाद, अकषाय और अयोग । सब से पहले चंचलता का निरोध करना है। हम इस भाषा में समझे, स्वतःचालित क्रिया चलती रहे और इच्छाचालित क्रिया को बंद कर दें। इससे आंशिक निरोध हो गया, पूर्ण निरोध नहीं हआ। किंतु ऐसा करते-करते एक अवस्था आती है, स्वतःचालित और इच्छाचालित--दोनों क्रियाएं रुक जाती हैं। जहां कोई विचार नहीं होता, आलंबन नहीं होता वहां पूर्ण निरोध होता है। पारिभाषिक शब्दावली में कहा जा सकता है-सबसे पहले योग का निरोध करें, योग को रोकने का अभ्यास करें। योग कम होगा तो कषाय कम होता चला जाएगा, अकषाय संवर पुष्ट बनेगा । इससे एक बात स्पष्ट होती है-जितनी हमारी Jain Education International al For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.orgPage Navigation
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