Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 53
________________ ४६ नवतत्त्व : आधुनिक संदर्भ - हमें चलना है । प्रश्न है- हमारा क्या काम होना चाहिए ? हमारा दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए ? हम यह ध्यान देंचौबीस घंटे में असत् का प्रवर्तन कितना होता है ? सत् का प्रवर्तन कितना होता है ? निवर्तन कितना होता है ? हम ऐसा पुरुषार्थ करें, जिससे असत् का निवर्तन कर सकें, इसके -साथ- साथ सत् का भी निवर्तन कर सकें। यदि हम असत् के निवर्तन और सत् के प्रवर्तन का ठीक मूल्यांकन कर पाएं तो जीवन - क्रम बदल जाए, जीवन की चर्या बदल जाए । जीवन-चर्या का दर्शन तपस्या की प्रक्रिया जीवन चर्या का महत्त्वपूर्ण दर्शन है। भोजन, चलना-फिरना, उठना-बैठना आदि हमारे जीवन की अनिवार्यता है । इन्द्रियों से काम लेना भी अनिवार्यता है । हमारे जीवन की ये तीन मुख्य प्रवृत्तियां बनी हुई हैं- आहार, गतिक्रिया और इन्द्रिय प्रवृत्ति । इन तीनों का निवर्तन करना या इन तीनों का सयम्क् प्रवर्तन करना तपस्या का पहला पाठ है । आहार के द्वारा एक व्यक्ति अहिंसा की दिशा में भी जा सकता है, हिंसा और अपराध की दिशा में भी जा सकता है । आधुनिक वैज्ञानिक खोजों से यह प्रमाणित हो गया है कि आहार का ठीक विवेक न हो तो वह व्यक्ति को हिंसक भी बना देता है और यदि आहार का ठीक विवेक हो तो वह अहिंसा की भावना को भी जन्म दे देता है। ऐसा ही इन्द्रियों के साथ घटित होता है । वे हमें स्वस्थ भी बना देती हैं, रुग्ण भी बना देती हैं । हम सम्यक् प्रवर्तन या निवर्तन करना सीखें । आंख से काम लेना है तो आंख को मूंदकर काम लेना भी जरूरी है । कान से सुनना है तो उसे बन्द करके सुनना भी जरूरी है । 1 Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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