Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 55
________________ ४८ नवतत्त्व : आधुनिक संदर्भ चंचलता है उतनी ही उत्तेजना है। क्रोध, मान, माया और लोभ- इन सबका प्रकोप होता है चंचलता के कारण । आवेश कम होंगे तो प्रमाद भी कम हो जाएगा। प्रमाद कम होगा तो आकांक्षा कम हो जाएगी, अविरति कम हो जाएगी, व्रत संवर का विकास होने लगेगा। जब यह सब घटित होगा, तब मिथ्या-दर्शन कहां टिकेगा? तत्त्वज्ञान की दृष्टि से प्रथम है सम्यक्त्व और साधना की दृष्टि से प्रथम है योग का निरोध, अयोग संवर । यह संवर की प्रक्रिया है। प्रक्रिया शोधन की ___शोधन की प्रक्रिया में सबसे पहले आहार-शुद्धि पर ध्यान दें, उसके बाद गति-क्रिया पर ध्यान दें। उसका उपाय हैं । कायक्लेश । काया को साधे । उसके बाद इन्द्रियों को साधे । आयुर्विज्ञान में अब तक इस पर बहुत ध्यान नहीं दिया गया है । इन्द्रियों की क्रिया से भी बीमारियों का गहरा संबंध है। इन्द्रियों की अति चंचलता और लोलुपता बीमारियों को निमन्त्रण देती है। शोधन की प्रक्रिया में इस बात पर ध्यान दिया गया-इन्द्रियां भी नियंत्रित और संतुलित होनी चाहिए। उसके बाद अहंकार पर ध्यान दिया गया । जब तक अहंकार है तब तक अतीत का शोधन नहीं हो सकता, विनम्रता और सेवा-भावना विकसित नहीं हो सकती। इसी क्रम में कहा गया-शोधन करना है तो कुछ नया ज्ञान बढ़ना चाहिए, निर्मलता बढ़नी चाहिए । निर्मलता के साथ एकाग्रता और निर्विकल्पता का अभ्यास भी परिपक्व बनना चाहिए । ऐसी स्थिति बने कि विचार आए ही नहीं। इस शोधन की प्रक्रिया की अंतिम बात है-विसर्जन । व्यक्ति दुनिया से अपने आपको अलग कर ले । वह दुनिया के बीच रहते हुए भी अपने आपको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66