Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 43
________________ ३६ नवतत्त्व : आधुनिक संदर्भ दरवाजा अपने आप बन्द हो जाएगा। हम शरीर की चंचलता को कम करें, वाणी की चंचलता को कम करें। बोलना आवश्यक है । बोले बिना काम नहीं चलता, पर अनावश्यक न बोलें । यदि हम आवश्यकतावश बोलें. तो दूसरों को संताप देने वाली वाणी न बोलें, हिंसा करने वाली वाणी न बोलें। यदि ये सारे निरोध होते चले जाएंगे तो वाणी की स्थिरता सधती चली जाएगी वाक् पर नियन्त्रण होता चला जाएगा। वाणी का निरोध होता है तो एक दरवाजा बन्द हो जाता है । वाक्निरोध के लिए भी साधना जरूरी है । हम आधा घण्टा, एक घण्टा काय-स्थिरता की साधना करें तो साथ-साथ वाणो का निरोध भी करें। प्रश्न है-वाणी का निरोध कब करें ? कुछ लोग नींद के समय बोलने का त्याग कर लेते हैं। वस्तुतः इससे वाकगुप्ति की सिद्धि नहीं होती। मौन तब 'करना चाहिए जब बोलने का समय हो । इस स्थिति में ही मौन को सार्थकता हो सकती है। मनोगुप्ति : मन की सिद्धि संवर की सिद्धि का एक उपाय है-मनोगुप्ति, मन की सिद्धि । मन न जाने बाहर से कितना कूड़ा-करकट ले आता है । उसके निरोध की तीन स्थितियां हैं। पहली स्थिति हैअकुशल का निरोध, मन अकुशल न हो। ऐसो साधना की जाए, जिससे मन में कोई अकुशल-अशुभ विचार न आए। दूसरी स्थिति है-कुशल का संकल्प, कुशल मन का प्रवर्तन । मन पवित्र ही पवित्र रहे । तीसरी स्थिति है-कुशल मन का निरोध । कोई विचार नहीं, चिन्तन नहीं, निर्विचार अवस्था, अमन अवस्था । जब शरीर की सिद्धि, वाणी की सिद्धि और मन का Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.orgPage Navigation
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