Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 49
________________ ४२ नवतत्त्व : आधुनिक संदर्भ विशुद्धि नहीं हो सकती। रेचन करो, इसका अर्थ है-भीतर जो खराबी है, उसे निकालो। निरोध करो, इसका अर्थ है-पुनः खराबी पैदा न हो, इसकी व्यवस्था करो । रेचन है - निर्जरा | निरोध है संवर । सारी आध्यात्मिक प्रक्रिया इन दो शब्दों में समाहित है -संबर और निर्जरा, रोको और विशुद्धि करो । उदासी का रहस्य I आयुर्वेद के एक महान् आचार्य थे । उनका नाम था आचार्य पुनर्वसु । उनके पट्टशिष्य थे - अग्निवेश । एक दिन दोनों भ्रमण कर रहे थे। चलते-चलते आचार्य पुनर्वसु ने आकाश को निहारा । उनके कदम रुक गए, चेहरे पर उदासी छा गई । अग्निवेश अचानक आए इस परिवर्तन से अवाक् रह गया । उसने पूछा - गुरुदेव ! यकायक यह उदासी क्यों छा गई ? पुनर्वसु बोले- मैंने चरक को संहिता का प्रणयन किया । मानव समाज को स्वस्थ रखने के लिए जितना करना चाहिए था उतना मैंने कर दिया, परन्तु आज लगता है - मेरा काम पूरा नहीं हुआ । गुरुदेव ! यह कैसे कह रहे हैं आप ? वत्स ! मैंने आकाश दर्शन से यह जान लिया है कि भविष्य में क्या होने वाला है । गुरुदेव ! भविष्य में क्या होगा ? वत्स ! मैंने भविष्य में होने वाली तीन स्थितियां देखी हैं । पहली बात है - प्रकृति- विपर्यय । प्रकृति के जो पांच भूत हैं- पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति, ये पांचों प्रकंपित हो रहे हैं । आज की भाषा में हम इसे पर्यावरण का प्रदूषण कह सकते हैं । आदमी कितनी ही दवा ले, यह प्रकृति- विपर्यय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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