Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 36
________________ २९ बोया बीज बबूल का, आम कहां से होय ? लगेगी, न पर-निन्दा अच्छी लगेगी। व्यक्ति सोचेगा, जो भी करता हूं, इसका अर्थ है-बीज बोता हूं। उसकी जो फसल आएगी, उसे काटना होगा। इस बात को जो बराबर ध्यान में रखता है, उस आदमी की स्थिति बदल जाती है। असातवेदनीय का परिणाम कहा गया-नव तत्त्व का जो ज्ञान है, वह सम्यक् दर्शन है। प्रश्न है -- ऐसा क्यों कहा गया ? जो नव तत्त्व को जान लेता है उसका दर्शन सम्यक् बन जाता है, यह किस दृष्टि से कहा गया ? जब व्यक्ति आश्रव और बंध की स्थिति को जान लेता है, पुण्य और पाप की स्थिति को जान लेता है, तब उसका दृष्टिकोण अपने आप समीचीन बन जाता है। वह मिथ्या आचरण नहीं कर सकता। मिथ्या दृष्टिकोण इसलिए है कि व्यक्ति आश्रव, बंध, पुण्य और पाप की मर्यादा ठीक से नहीं जानता। एक आदमी ने कहा-मेरे पास मकान है, धन है, पुत्र है, सुशील पत्नी है, सब कुछ है, फिर भी मैं दुःखी हूं। कभीकभी मन में आत्महत्या का विचार भी उठ जाता है । इसकी क्या व्याख्या करेंगे ? इसका कारण है-सब कुछ है पर सातवेदनीय कर्म का उदय नहीं है। इसका अर्थ है-- असातवेदनीय का प्रबल उदय है, सुखद और अनुकल संवेदना का उदय नहीं है, विपाक नहीं है । एक वैज्ञानिक आत्महत्या कर लेता है, एक धनपति सेठ आत्महत्या कर लेता है क्योंकि उसका मन दुःखी होता है । व्यक्ति दुखी क्यों होता है ? हम इस पर भी विचार करें। उमास्वाति ने बहुत सुन्दर कारण बतलाया-जो व्यक्ति दूसरों को दुखी बनाता है, शोक संतप्त करता है, उसके असातवेदनीय कर्म का बंध होता है। जब असातवेदनीय कर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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