Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 40
________________ क्या दरवाजा बंद है ? चाबियां कहीं बाहर नहीं हैं, भीतर हैं । एक चाबी हाथ में ली, दरवाजा खुल गया, पर विशेष घर उसी चाबी से बन्द है । एक खुलता है, दूसरा बन्द हो जाता है । दरवाजा खुला और प्रवाह आने लगा । दरवाजा बन्द कर दिया, बाहर से सब कुछ आना बंद हो गया। फिर कोई दु:ख नहीं । दुःख भीतर में है ही नहीं, यह सचाई है । जितना दुःख, संताप, भय और वेदना है, वह सब बाहर से आया हुआ है, अपने भीतर नहीं है। कहीं से कुछ मंगाया, कहीं से कुछ मंगाया और इतना भंडार भर लिया कि भीतर में एक कबाड़खाना जैसा बन गया । एक चाबी घुमाई, दरवाजे को बन्द किया तो आयात बन्द हो गया । इसका अर्थ है-नए सिरे से भीतर कुछ भी नहीं आ रहा है । दरवाजे को बन्द करने की प्रक्रिया का नाम है-संवर । दरवाजा बंद हो गया, संवरण हो गया । संवर : संवर की सिद्धि बहुत लोग ऐसा त्याग करते हैं - मैं आज अमुक चीज नहीं खाऊंगा, अमुक काम नहीं करूंगा । व्यक्ति मानता हैमैंने त्याग कर लिया, मेरे संवर हो गया। यह एक भ्रम चलता है । वस्तुतः जब तक संवर की सिद्धि नहीं होगी तब तक संवर पूरा नहीं होगा । संवर करना और संवर की सिद्धि कर लेना-- इन दोनों में बहुत फासला है । एक व्यक्ति यह त्याग कर लेताहै कि मैं अमुक चीज नहीं खाऊंगा किन्तु जब तक उस चीज को. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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