Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 28
________________ स्वतंत्र भी बंधा हुआ है ईश्वरवादी मानते हैं-ईश्वर की इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। प्रत्येक मनुष्य के जीवन को ईश्वर चला रहा है, किन्तु कर्मवाद को मानने वाला ऐसा नहीं मानता। क्या कर्मवाद चला रहा है ? ऐसा मानना भी ठीक नहीं है। अगर कर्मवाद चलाए तो ईश्वरवाद क्यों न चलाए ? कर्मवाद भी व्यक्ति को नहीं चलाता । चलाने वाली हमारी अपनी आत्मा है, हमारी अपनी चेतना है। बीच-बीच में अनेक बाधाएं अवश्य आती हैं, इसलिए आदमी एक जैसा नहीं चल पाता। व्याख्या का सूत्र प्रश्न होता है आज तक कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं हुआ, जिसका जीवन एक जैसा रहा हो ? जीवन में उतार-चढ़ाव न आए हों । इसका कारण क्या है ? इसकी व्याख्या का सूत्र क्या है ? इसकी व्याख्या का सूत्र वही है-कर्मशरीर । इस अन्धकारमय जगत् में पुण्य और पाप दोनों का भण्डार है। पाप का भी भण्डार भरा है, पुण्य का भी भंडार भरा है। जिसको मौका मिलता है, वह बाहर आ जाता है और व्यक्ति को प्रभावित कर देता है। पाप सामने आता है तो अशुभ सामने आ जाता है, जीवन में अशुभ आचरण और व्यवहार होने लगता है । पुण्य सामने आता है तो जीवन में शुभ आचरण और व्यवहार होने लग जाता है। शुभ और अशुभ, पुण्य और पाप- दोनों का भंडार हमारे भीतर भरा पड़ा है । वह जैसाजैसा बाहर आता है, आदमी वैसा-वैसा बनता जाता है। इसी अर्थ में कहा जाता है -- बंधा हुआ व्यक्तित्व । आदमी मुक्त नहीं है, बंधा हुआ है। दोहरा व्यक्तित्व हमारा व्यक्तित्व सहज ही दोहरा है, बाह्य और आन्त Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.orgPage Navigation
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