Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 31
________________ २४ नवतत्त्व : आधुनिक संदर्भ पाप । जीवन का दूसरा पहलू भी है । मनोविज्ञान में चित्त और मन -ये दो तत्त्व माने गए हैं। हम इससे भी आगे चलें, इसमें एक चीज जोड़ दें- आत्मा। यंग ने चित्त को आधार माना इसलिए आत्मा जैसा तत्त्व उसके लिए उपयोगी नहीं बना । यूंग ने मन को भी आधार के रूप में स्वीकार नहीं किया। फ्रायड ने मन को आधार माना । उसके लिए चित्त और आत्मा -दोनों का कोई मूल्य नहीं था। किन्तु एक दार्शनिक व्यक्ति मन और चित्त -दोनों से आगे चलेगा, आत्मा को आधार मानेगा। संघर्ष का उद्देश्य हम आत्मा को भी मानते हैं, चित्त और मन को भी मानते हैं। मन और चित्त से परे है आत्मा । मन और चित्तइन दोनों को चेतन और अचेतन - दो संभाग मानें, हम कर्मशरीर तक पहुंच जाएंगे। कर्म-शरोर बांधने वाला है, वह स्वतन्त्रता नहीं देता । स्वतन्त्रता का मूल्यांकन करने के लिए आत्मा के पास जाना जरूरी है। आत्मा कर्म-शरीर से परे है और वह बंधन को तोड़ने के लिए निरन्तर संघर्ष कर रहा है। उसे पारिभाषिक शब्दों में कहा जाता है-पारिणामिक भाव । संघर्ष का उद्देश्य है - अस्तित्व प्रकट हो, सारे बंधन टूट जाएं। उस संघर्ष में से जो आता है, वह है हमारी स्वतन्त्रता । आत्मा हमारी स्वतन्त्रता को बनाए हुए है और बंधन हमारी स्वतंत्रता को बाधित बनाए हुए है। यह स्वतन्त्रता और परतन्त्रता का संघर्ष निरन्तर चल रहा है और उसके वीच चल रहा है हमारा व्यक्तित्व, जो स्वतंत्र है किन्तु बंधा हुआ भी है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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