Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 22
________________ यह दुःख कहां से आ रहा है १५ कायोत्सर्ग । तीसरा सूत्र है -चिन्तन का निरोध । जब मन, वाणी और काया-इन तीन का निरोध होगा तब ध्यान होगा । जितनी काया को एकाग्रता सधेगो, वाणी और मन को एकाग्रता सधेगो, ध्यान उतना ही प्रबल और लाभकारी होगा । जब रसद को सप्लाई हो नहीं होगी तो सेना लड़ेगी कैसे ! काया, वाणी और मन के द्वारा जो रसद मिलती है, जब वह बंद हो जाएगी तब ध्यान का अध्याय प्रारंभ होगा, आश्रव का द्वार सिकुड़ जायेगा, बाहर से आना बंद हो जाएगा। इस स्थिति में हो ध्यान सधता है, ज्ञाता को समझने का अवसर मिलता है। दो अवस्थाएं समस्या है मूढ अबस्था । जब तक चित्त की मूढ अवस्था रहेगी तब तक समस्या का समाधान नहीं हागा । यह अवस्था बनतो है श्वास, योग और चंचलता के कारण। जितना श्वास, जितना योग, जितनी चंचलता उतनी क्षिप्त अवस्था। इस स्थिति में सत्वगुण कमजोर हो जाता है, रजोगुण और तमोगुण प्रबल हो जाता है। दो अवस्थाएं हैं-अज्ञानता की अवस्था और मूढ़ता की अवस्था । एक व्यक्ति नहीं जानता, यह अज्ञानता है । एक व्यक्ति जानते हुए भी नहीं जानता, यह मूढ़ता है । आश्रव का पहला प्रकार है-मिथ्या दृष्टिकोण । मिथ्या दृष्टिकोण बना और मूढ़ता आ गई । मूढ़ व्यक्ति जाता है -सुख को दिशा में और प्राप्त करता है-दुःख । चंचलता और आश्रव ___ दुःख का पहला स्रोत है-मिथ्या दृष्टिकोण । दूसरा स्रोत है-अविरति-आकांक्षा । व्यक्ति में इतनो आकांक्षा है कि जिसका कोई अन्त नहीं । तीसरा स्रोत है-प्रमाद । व्यक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.orgPage Navigation
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