Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 23
________________ १६ नवतस्व : आधुनिक संदर्भ को धन याद रह जाता है, मान याद रह जाता है, अपमान और गाली याद रह जाती है किन्तु मैं चैतन्यमय हूं, आनन्दमय हूं, यह याद नहीं रहता । चौथा स्रोत है - कषाय - क्रोध, मान, माया और लोभ । इन सबको उद्दीप्त करती हैचंचलता । जो व्यक्ति आत्मा से परमात्मा बनना चाहता है, ध्यान करना चाहता है, उसे सबसे पहले ध्यान देना होगा चंचलता पर | चंचलता कम होगी, आश्रव कम होगा, चंचलता मिटेगी, आश्रव का द्वार बंद हो जाएगा, दुःख का स्रोत बन्द हो जाएगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66