Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 16
________________ यह दुःख कहां से आ रहा है ? जीव और अजीव-ये दो तत्त्व हैं । जोव की भो स्वतंत्र सत्ता है और अजीव की भी स्वतंत्र सत्ता है। प्रश्न उठा-दोनों में संबंध कैसे है ? भारतीय और पाश्चात्य - दोनों दर्शनों में यह प्रश्न बहुत उलझा हुआ रहा है । एक चेतन है और एक अचेतन । एक अमूर्त है और एक मूतं । दोनों में संबंध कैसे स्थापित हो सकता है ? यह स्वीकार किया गया-इन दोनों में अतःक्रिया है, दोनों एक दूसरे से प्रभावित हो गए हैं। पर यह संबंध कौन स्थापित कर रहा है और यह संबंध कैसे स्थापित हो रहा है ? हम इस पर विचार करें । यह स्वीकार करना चाहिए - अमूर्त और मूर्त में कभी संबंध नहीं हो सकता, चेतन और अचेतन में कभी संबंध स्थापित नहीं हो सकता। चेतन और अचेतन - दोनों में स्पर्श हो सकता है पर वे एकदूसरे को प्रभावित करें, यह कभी संभव नहीं है । संबंध तभी हो सकता है, जब एक-दूसरे में गहरा तादात्म्य हो, अन्यथा संबंध का होना कभी संभव नहीं है । समस्या का हेतु तर्कशास्त्र में कहा जाता है “वर्षातपाभ्यां किं व्योम्नः" -~-मूसलाधार वर्षा बरसे या गहरी धूप पड़े, आकाश पर क्या उनका असर होता है ? वर्षा से आकाश ठंडा नहीं होता और धूप से आकाश गरमा नहीं जाता। धूप और वर्षा से आकाश में कोई अन्तर नहीं आएगा, वह वैसा का वैसा बना रहेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66