Book Title: Navsadbhava Padartha Nirnay Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 5
________________ उस अपूर्व अलौकिक शक्ती को अतिः,निर्वल करादिई है, उस अ. सीम शक्ती के सामने सर्प चंद्र जल वायु आदि की अमोघ शक्तियां भी सिर उठा नहीं सकतीं, ऐसे निर्मल अनन्त शक्तिषन्त हो के शक्तिहीन होना भला कहांतक अच्छा है ? - महानुभावो ! निष्पक्ष होके विचार करो यह अवगुण एकान्न तुम्हारा ही नहीं है, बह. अपलांछन तुम को ही कुशोभित नहीं किया है, इस प्रफलतने तुम्हारे ही को निर्धन नहीं किया है, इस अविद्याने तुम्हें ही मूर्ख शिरोमणि पदारूढ नहीं किया है, तुम्हारे संग साथी, तुम्हारे मित्र अमित्र, नाती गोती, बहुत से ऐसे ही हो रहे हैं । इस का मुख्य कारण यह है कि अनादि काल से ही तुम और तुम्हारे संयसाथी कुगुरु भ्रष्टाचार्यों का ही संग कर रहे हो, जिससे ही जीव अधिकांस मोह मित्थ्यात्वमयी निद्रासे निद्रित हो रहा है। वो कुगुरु हीनाचार्य स्वयं शुद्ध सीधा साधूपंथ पर, नहीं चल के दूसरे को भी नहीं चला सकते हैं, वो यह लौकिक पूजाशलाषार्थी जीव पंचिन्द्रियों के विषय भोग गर्भित देसना हिये गैर नहीं रहे, वो भेषधारी दया दया मुख पुकार कर हिंसा का प्रचार करते हैं । कहैं किसे सुनता है कौन, बतावे किसे देखता है कौन, चारों तरफ मित्थ्यामयी महाघोरांधकार छा रहा है, पापकर्म रूपी महाकाली विकराली घटाओं से शुद्धखरूप सूर्य, छिपाहुवा है। लेकिन ज्ञान चल से देखो, सुर्मात से खयाल करो, वह शुद्धस्वरूप सूर्य छिप कर के भी नहीं छिपा है, सुमति से ख. याल करो वोह तुम्हारी निर्मल अमित कान्ति मलीन हो के भी विकृत नहीं हुई है, वह तुम्हारा बल वीर्य पुरुषाकार पराक्रम कहीं नहीं गया है, सव तुम्हारे निजगुण तुम्हारे पास हैं, अगर तुम्हें अपने गुण प्रकट करने हैं और अपनी आत्मोन्नति करनी है तो शु साधू महात्माओं की संगति करो तथारागद्वेष रहित वीतराग प्रभु के वचनों के अनुसार चलो, हिंसामतकरो, संयमी हो, झूठ मत.वोलो, चोरी मत करो, ब्रह्मद्रत धारण करके निर्लोभी निष्परिग्रही हो, घस यही राह सीधी मुक्ति मिलने की है, बाकी सब दोग है, जहांपर पैसे और स्त्री का प्रचार है यहां कुछ आत्मोनPage Navigation
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