Book Title: Nandisutra Mahatmya
Author(s): Gyansundar
Publisher: Shah Maneklal Anupchand

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Page 8
________________ [१] सुहम्मं अग्गिवेसाणं जंबुनामं च कासवं पभवं"। कच्चायणं वंदे वच्छं सिजंभवं तहा ॥२५॥ जसभई तुंगियं वंदे संभूयं चेव माढरं ॥ भद्दबाहुं च पाइन्नं थूलभदं च गोयमं ॥ २६ ॥ एलावच्चसगोत्तं वंदामि महागिरि सुहत्थिं च ।। तत्तो कोसिअगोत्तं बहुंलस्स सरिव्वयं वन्दे ॥२७॥ हारिय गुत्तं साइंच वंदामी हारियं च सामजं ॥ वन्दे कोसिअ गोत्तं संडिल्लं अज जीयधरं ॥ २८ ॥ तिसमुद्धखायकित्तिं दीवस मुद्देमु गहिय पेयालं ॥ वंदे अज्ज समुदं अक्खुभिय समुद्दगंभीरं ॥ २९ ॥ भणगं करगं झरगं पभावगं नाणदंसण गुणाणं ॥ वंदामि अज मंगुं सुय सागर पारगं धीरं ॥ ३० ॥ वंदामि अज धम्मं तत्तो वंदे य भई गुत्तं च ॥ तत्तीय अज वहरं तव नियम मुणेहिं वहर समं ॥३१॥ वंदामि अज रक्खियं खमणे रक्खिय चारित्ते सव्वस्से ॥ रयण करडंग भूओ अणुओग रक्खिओ जहिं ॥३२॥ नाणमि दंसणं मिअ तव विणए निच काल मुज्जुत्तं॥ अजं नंदिलखमणं सिरसा वंदे पमन्नमणं ॥ ३३ ॥

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