Book Title: Nandisutra Mahatmya
Author(s): Gyansundar
Publisher: Shah Maneklal Anupchand
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[१२] जोअणा जाणइ पासइ । पासओ अंतगएणं ओहिनाणेणं पासओ चेव संखिज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा जोअणाइं जाणइ पासइ । मज्झगएणं ओहिनाणेणं सव्वओ समंता संखिज्जाणि वा असंखेन्जाणि वा जोअणाई जाणइ पासइ सेतं आणुगामिभं ओहिनाणं । सेर्कितं अणाणुगामिअं ओहिनाणं । अणाणु. गामि ओहिनाणं से जहा नामए केइ पुरिसे एगं महंतं जोइट्ठाणं काउं तस्सेव जोइहाणस्स परिपेरं तेहिरं परिघोले माणे २ तमेव जोडहाणं पासह अन्न स्थगए न जाणइ न पासेह एवामेव अणाणुगामिअं ओहिनाणं जत्थेव समुप्पज्जेइ तत्थेव संखिज्जाणिवा असंखेज्जाणिवा संबडाणिवा असंबद्धाणिवा जो अणाई जाणइ पासइ अन्नत्यं गए न जाणइ न पासह सेतं अणाणुगामि ओहिनाणं। सतिं वड्ढमाणयं ओहिनाणं । बड्ढमाणयं ओहिनाणं पसत्थेसु अझ वसाणहाणेसु वड्ढमाणस्स वड्ढमाण चरित्तस्त । विसुज्झमाणस्स विसुज्झमाण चरित्तस्स । सबओ समंता ओहिनाणं वढइ-- जावइआ तिसमयाहारगस्स सुहमस्स पणगजीवस्स॥ ओगाहणा जहन्ना ओहीखित्तं जहन्नं तु ॥१॥

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