Book Title: Nandisutra Mahatmya
Author(s): Gyansundar
Publisher: Shah Maneklal Anupchand

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Page 33
________________ [३१] पुढे सुणेइ सह, रूवं पुण पासइ अपुटुंतु ॥ गंध रसं च फासं च, बडपुढे वियागरे ॥ ४॥ भासा समसढीओ, सदं जंसुणह मीसियं सुणह ॥ वीसेढी पुण सडं, सुणइ नियमा पराघाए ॥५॥ ईहा अपोह वीमंसा, मरगणार गवेलणा। सन्ना सई मई पन्ना, सव्वं आभिणि बोहि अं॥ ६ ॥ सेत्त आभिणि बोहियनाण परोक्व । (सेत्तं मइनाणं) सेकिंतं सुयनाण परोक्खं । सुयनाण परोक्वं चोइस्स विहं पन्नतं तं जहा-अक्खरसु, अणक्खरसुंयं, सन्निसुयं, असन्निस्य, सम्मसुंयं, मिच्छKयं, साइ अंसुयं, अणाइ अंसुयं, सपज वसिअंसुंयं, अपज वसिसुयं, गमिअंसुयं, अगमियसुयं, अंगपचिट्ठसुयं, अणंगपविट्ठसुय । सेकिंतं अक्खरसुयं । अक्खरसुयं तिविहं पन्नतं तं जहा । सन्नक्खरं वंजण क्खरं लद्विअक्खरं । सेवितं सन्नक्खरं । सनक्खरं अक्खरस्स सहाणगइ । सेतं सन्नक्रवरं । सोकिंतं वंजणक्खरं । वंजणक्खरं अक्खरस्त वंजणाभिलावो सेत्तं वंजणक्खरं । सेकिंतं लडि अक्खरं । लद्वि अक्खरं अक्खर लद्वियस्स लहि अक्खरं समुप्पजह

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