Book Title: Nandisutra Mahatmya
Author(s): Gyansundar
Publisher: Shah Maneklal Anupchand
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[३०]
सुमिपत्ति उग्गहिए नोचेवणं जाणइ केवेल सुमि णोति । तओ ईहं पविसह तओ जाणइ अमुगे एस सुमिणे । तओ अवायं पविसइ तओसे उवगयं हवइ । तओ धारणं पविसह तओ धारेइ संखियं वा कालं असंखिजं वा कालं । सेतं मल्लग दितेणं । तं समासभ चउव्विहं पन्नतं तं जहा- दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ । तत्थ दव्वओणं, आभिणि बोहिय नाणी आए सेणं सव्वाइं दव्वाई जाणइ न पासइ | खेतओणं आभिणि बोहिय नाणी आएसेणं सव्वं खेतं जाणइ न पासइ । कालओणं आभिणि बोहियनाणी आएसेणं सव्वं कालं जाणइ न पासइ । भावओणं आभिणि बोहिय नाणी आएसणं सव्वे भावे जाणइ न पासइ ॥
उग्गहई हाडवाओ य धारणा एवं हुंत्ति चत्तारि आभिणि बोहिय नाणस्स भेयवत्थू समासेणं ॥ १ ॥ अत्थाणं उग्गहणमि उग्गहे, तह विआलणे ईहा ॥ वयसायमि अवाओ, धरणं पुण धारणं बिंति ॥२॥ उग्गह एकं समयं, ईहा वाया मुहुत महंतु ॥ कालमसंखं संखं च धारणा होइ नायव्वा ॥ ३॥

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