Book Title: Nandisutra Mahatmya
Author(s): Gyansundar
Publisher: Shah Maneklal Anupchand

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Page 17
________________ [१५] ओहिनाणं । तं समासओ चउव्विहं पन्नतं तं जहा दव्वओ । खित्तओ। कालओ । भावओ। तत्थ दव्व ओणं ओहिनाणी जहन्नेणं अणंताई रूविदव्वाई जाणइ पासइ उक्कोसेणं सव्वाइं रूविदव्वाइं जाणइ पासइ । खित्तओणं ओहिनाणी जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइ भागं जाणइ पासइ उक्कोसेणं असंखिजाई अलोगे लोगप्पमाण मित्ताइं खंडाइं जाणाइ पासाइ । कालओणं ओहिनाणी जहन्नेणं आवलिआए असंखिज्जई भागं कालं जाणइ पासइ उक्कोसेणं असंखिज्जाओ उस्सपिणीओ अवसप्पिणीओ अईय मणागयं च कालं जाणइ पासइ । भावओणं ओहिनाणी जहन्नेणं अणंते भावे जाणइ पासइ उक्केसेणं अणंते भावे जाणइ पासइ सव्व भावाण मणंत भागं भावे जाणइ पासइ सेत्तं ओहिनाणं । सेकिंते मण. पज्जवनाणं । मणपज्जवनाणेणं भंते किं मणुस्साणं उप्पजइ अमणुस्साणं उप्पज्जइ । गोयमा । मणुस्साणं उपजइ नो अमणुस्साणं० । जइमणुस्साणं उप्पज्जा किं संमुच्छिम मणुस्साणं० गम्भवकंति मणुस्साणं उप्पज्जइ । गो० । नोसमुच्छ० गम्भवकंदिया जा

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