Book Title: Nandisutra Mahatmya
Author(s): Gyansundar
Publisher: Shah Maneklal Anupchand
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[२०] विउलमई अड्ढइजेहि मंगुलेहिं अन्भहि अतरं विउलतरं विसुद्धतरं वितिमिरतरं खित्तं जाणा पासइ । कालओणं उज्जुमई जहन्नेणं पलिओवमस्स असंखिजा भागं उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखिजइ भागं अइय मणागयंवा कालं जाणइ पासइ तं चेव विउलमई अम्भाहियतरागं विउलतरागं विसुद्धतरागं वितिमिरतरागं जाणइ पासइ । भावओणं उज्जुमई जहन्नेणं अणंते भावे जाणह पासइ उक्को. सणं अणंते भावे जाणइ पासइ सव्व भावाणं अणंत भागं भावं जाणइ पासइ । तं चेव विउलमई अन्भहियतरागं विउलतरागं विसुद्धतरागं वितिमिर तरागं भावं जाणइ पासइ ॥ मणपज्जवनाणं पुण जणमण परिचिं तिअथ पागडणं । माणुसखित्तं निबद्धं । गुण पचहअं चरित्तवओ ॥ १ ॥ सेत्तं मणपजवनाणं।
सेकिंतं केवलनाणं । केवलनाणं दुविहं पन्नत तं जहा भवत्य केवलनाणं च सिद्धत्य केवलनाणं च । सेकिंतं भवत्थ केवलनाणं । भवत्थ केवलनाणं दुविहं पन्नत्तं तं जहा सजोगि भवत्थ केवलनाणं च अजोगि

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