Book Title: Nandisutra Mahatmya
Author(s): Gyansundar
Publisher: Shah Maneklal Anupchand
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[२४] पुव्वं अदिट्ठमस्सु अमवेइय तक्खण विसुद्ध गहि अत्था। अव्वाहय फलजोगा बुद्धी उप्पत्ति आ नाम ॥२॥ भरहसिल पणिय रुक्खे खुईंग पडें सरर्ड काय उच्चार। गर्य घयण गोले खंभे खुड्डेग मॉग्गित्यि पहें पुत्ते॥३॥ भरह सिल भिं? कुक्र्ड वालों हत्थी अगड़ें वणसँडे। पायर्स अइओं पत्ते खाडहिली पंचपिअरोों ॥४॥ मुहसिथ मुदि के नाणएँ भिक्खं चेडगनिहाणे ॥ सिखायं अत्यसैत्थे इच्छायम सयमहस्से ॥५॥ भरनित्थरण समत्थाति वग्गसुत्तत्थ गहिअपे आला॥ उभओ लोग फलवह विणय समुत्था हवइ बुद्धि ॥६॥ निमित्त अत्थसत्थर्य लेहे गणिए कूवें अस्से ॥ गद्दर्भ लक्खणे गंठी अगएं रहिएय गणियाय ॥७॥ सीआसाडी दीहं चतणं अव सव्वयं च कुंचस्स ॥ निव्वोदए गोणे घोडगपडणं च रुक्खाओ ॥ ८ ॥ उव ओगदिसारा कम्मपसंग परिघोलण विसाजा॥ साहुक्वार फलवई कम्म समुत्था हवइ बुद्धि ॥९॥ हेरनिए करिसए कोलिय डोवेर्य मुत्तिं घर्य पवएँ । तुन्नाएं वड्ढइये पूर्यई घडे चित्तौरेय ॥१०॥ अणुमाणहेउ दिद्वंत साहिआ वयविवग परिणामा । हिअनिस्सेअस फलवई बुद्धी परिणामिआ नाम॥११॥

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