Book Title: Nandisutra Mahatmya
Author(s): Gyansundar
Publisher: Shah Maneklal Anupchand

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Page 25
________________ [२३] सेत्तं केवलनाणं सेतं पच्चक्खं नाणं ॥ सेकिंतं परुक्ख नाणं । परुक्खनाणं दुविहं पन्नत्तं तं जहा-आभिणि बोहिअनाणं परुक्खं च । सुअनाण परोक्खं च जत्थआभिणि बोहियनाणं तत्थ सुअनाणं। जत्थ सुअनाणं तत्थाभिणि बोहियनाणं। दोऽवि एयाई अन्नमन्नमणुगयाइं तहवि पुण इत्थ आयरिया नान्नत्तं पन्नवयंति-आभिनिबुज्झइत्ति आभिणि बोहियनाणं । सुणेइत्ति सुअं मइपुव्वं जेण सुअं नमइ सुअपुग्विआ। अविससिआ मह-मइनाणंच मइ अन्नाणंचविसेसिआ सम्मदिहिस्स मइ-मइनाणं । मिच्छदिहिस्स मइ-मह अन्नाणं । अविसेसिअं सुअं-सुअनाणं च सुअ अन्नाणं च विसेसिअं सुअं-सम्मदिहिस्त सुअं-सुअनाणं-मिच्छदिहिस्स सुअं-सुअ अन्नाण । सेकिंतं आभिणी बोहियनाणं । आभिणी बोहियनाणं दुविहं पन्नत्तं तं जहा सुयनिस्सियं च असुयनिस्सियं च । सेकिंतं असुयनिस्सियं । असुय निम्सियं चउव्विह पन्नत्तं तं जहा । उप्पत्तिआ वेणईआ कम्मआ परिणामिआ ॥ बुद्धि चउन्विहा वुत्ता पंचमी नो वलन्भह ॥१॥

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