Book Title: Nandisutra Mahatmya
Author(s): Gyansundar
Publisher: Shah Maneklal Anupchand
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[९] सा समासओ तिविहा पन्नत्ता तंगहा जाणिआ, अजाणिआ, दुविअड्ढा, जाणिआ जहा खीरमिव, जहा हंसा जे घुदृन्ति इह गुरुगुण समिद्धा दोसे अविवज्जति तं जाणसु जाणिआ परिसा । अजाणिया जहा जाहोइ पगइ महुरा मिय छावय सीह कुक्कुडय भुआ । रयणमिव असं ठविआ। अजाणिआ साभवे परिसा। दुन्विअड्ढा जहा नय कत्थइ निम्माओ नय पुच्छइ परिभवस्म दोसेणं । वत्थिव्व वायपुण्णे फुहइ गामिल्लय विअडूढो । नाणं पञ्चविहं पन्नतं तं जहा-आभिणि बोहिअ नाणं सुअ नाणं, ओहिनाणं, मणपजव नाणं, केवलनाणं तं समासओ दुविहं पन्नत्तं तं जहा पच्चक्खं च परोक्खं च । सेकिंतं पञ्चक्खं । पच्चक्खं दुविहं पन्नत्तं तं जहा इंदिय पचक्खं । नोइं दिय पच्चक्खं च । सेकिंत इंदिअ पञ्चक्खं । इंदिअ पञ्चक्खं पञ्चविहं पन्नत्तं तं जहा सो इंदिअ पच्चक्खं । चरिकदिअ पञ्चक्खं । घाणिदिन पञ्चक्खं । जिभिदिअ पञ्चक्खं । फासिंदिअ पञ्चक्खं । सेतं इंदिअ पञ्चक्खं । सेकिंतं नो इंदिअ पञ्चक्खं । नोइंदिअ पञ्चक्खं तिविहं पन्नतं तं जहा-ओहिनाणं

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