Book Title: Nandisutra Mahatmya
Author(s): Gyansundar
Publisher: Shah Maneklal Anupchand
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अड्ढ भरह पहाणे बहुविह सज्झाय सुमुणिय पहाणे । 'अणुओगिय वर वसभे नाइल कुल वंसनंदिकरे ॥४४॥ भूयहि अप्प गन्भे वंदेऽहं भूयदिन माय रिए ॥ भवभय बुच्छेय करे सीसे नागज्जुण रिसीण ॥४५ ॥ सुमुणिय निचा निश्चं सुमुणिय सुत्तत्थ धारयं वन्दे ॥ सम्भावुभावणया तत्थं लोहिबणामाणं ॥ ४६ ॥ अत्थ महत्थक्खाणिं सुसमण वक्खाण कहण निव्वाणिं ॥ पयईइ महुरवाणिं पयओ पणमामि दूसगणिं ॥ ४७ ॥ तब नियम सच संजमं विणयज्जव खंति मद्दवरयणं ॥ सील गुणगद्दियाणं अणुओगे जुगब्वहाणाणं ॥ ४८ ॥ सुक्कुमाल कोमल तले तेसिं पणमामि लक्खण पसत्थे पाए पावयणीणं पढिच्छ सयए हि पाणि वइए ॥ ४९ ॥ जे अन्ने भगवन्ते कालिय सुय आणु ओगिए धीरे ॥ ते पणमि उण सिरसा नाणस्स परूवणा वोच्छं ॥ ५०॥ * इति ।
सेलघणं, कुडगे, चार्लेणि, परिपूणर्गे, हंसें, महिर्स, मेसेयँ, मसर्ग, जल्लुर्ग, विरांली, जाहेंगे, गो, भेरी, आमेरी ॥ १ ॥

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