Book Title: Nandisutra Mahatmya Author(s): Gyansundar Publisher: Shah Maneklal Anupchand View full book textPage 7
________________ [५] विविह गुण कप्प रुक्खग फलभर कुसुमाउल । वणस्स ॥ १६ ॥ नाण वर रयण दिप्पंत कंत वेरुलिय विमल चूलस्स ॥ वंदामि विणय पणओ संघ महामंदर गिरिस्त ॥१॥ गुण रयणु जल कडअं सील सुगंधि तव मंडिउद्देसं॥ सुयवरसंगसिहरं संघ महामंदरं वंदे ॥ १८ ॥ नगर रह चक्क पउमे चंदे सूरे समुद्ध मेरुमि ॥ जो उवमिजइ सयमं तं संघगुणायरं वंदे ॥ १९ ॥ बंदे उसमें अजियं संभव मभिनंदणं सुमइ सुप्पों सुपासं॥ ससि पुष्फदत सीयल सिजसं वासुपुजं च ॥ २० ॥ विमल मणंत च धम्म सन्ति कुथु अरं च मलिं च ॥ मुनिसुव्वय नमिनेमि पासं तह वडमाणं च ॥ २१ ॥ पढमित्थ इंदभूइ बीए पुणहोइ अग्गिभूइत्ति ॥ तईए य वाउभूइ तओ वियत्ते सुहम्मेय ॥ २२ ॥ मंडिअ मोरिय पुत्ते अकंपिए चेव अयल भायाय ॥ मे अजेय पहासेय गणहरा हुंति वीरस्स ॥ २३ ॥ निव्वुइ पह सासणयं जयइ सया सव्व भाव देसणयं॥ कुसमय मय नासणयं जिणिंदवर वीरसासणयं ॥२४॥Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60