Book Title: Nandanvan Kalpataru 2013 12 SrNo 31
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 34
________________ सुभाषितानि डॉ. वासुदेव वि. पाठकः 'वागर्थः' संस्कारशिष्टश्च वाण्या विशिष्ट: सत्त्वैस्समृद्धश्च विवेकवृद्धः । प्रीत्या प्रवृत्तश्च परोपकारे गुरुर्गरीयः प्रियमातनोति ॥ प्रभाते प्रभाते प्रभुं प्रार्थयामि प्रभाते प्रभाते निजं चिन्तयामि । स्वकीयं स्वरूपं तथा कल्पयामि स्वकीये स्वपे मनो योजयामि ॥ सम्पूज्याः सात्त्विकास्सुज्ञाः सदा सद्भावभाविताः । सार्वत्रिकं स्वकीयं च साधयन्ति शुभं हितम् ॥ २६

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