Book Title: Nandanvan Kalpataru 2013 12 SrNo 31
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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वर्धमान आदर्शः॥
डॉ. वासुदेव वि. पाठकः ‘वागर्थः'
प्रसन्नताप्रदायकः अमृतांशुः विधुः, पूर्णः प्रीणाति माम; सततमवलोकयितुमिच्छामि ॥
किन्तु,
न स मे आदर्शः; सततमपक्षीयते, लुप्तश्च भवति ॥
ममाऽऽदर्शस्तु, शुक्लद्वितीयायाः द्विजः ।
(स:)
सततं वर्धते वर्धते वर्धते;
पूर्णता एव लक्ष्यं तस्य । विश्वोपकारकः रसात्मको देवः, सोमो भूत्वा, पोषयत्यौषधीः पोषयति सर्वान् ।
अत एव, शिवार्थं शिवेन भूषणत्वेन, स्थापितो निजोत्तमाते॥
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