________________ विभाग] नमस्कारमाहात्म्यम् ते गतास्ते गमिष्यन्ति, ते गच्छन्ति परम्पदम् / आरूढा निरपायं ये, नमस्कार-महारथम् // 19 // यदि तावदसौ मन्त्रः, शिवं दत्ते सुदुर्लभम् / ततस्तदनुषङ्गोत्थे, गणना का फलान्तरे // 20 // जपन्ति ये नमस्कार-लक्षं पूर्ण त्रिशुद्धितः / जिनसंघ-पूजिभिस्तैस्तीर्थकृत्कर्म बध्यते // 21 // किं तपः-श्रुत-चारित्रैः, चिरमाचरितैरपि / सखे ! यदि नमस्कारे, मनो लेलीयते न ते 1 // 22 // योऽसंख्य-दुःखक्षय-कारण-स्मृतिः ये ऐहिकामुष्मिक-सौख्य कामधुक् / यो दुष्षमायामपि कल्पपादपो, .. मन्त्राधिराजः स कथं न जप्यते 1 // 23 // . न यद्दीपेन सूर्येण, चन्द्रेणाप्यपरेण वा / तमस्तदपि निर्नाम, स्यानमस्कार-तेजसा / / 24 // जेओ अपायरहित एवा नमस्काररूप महारथमां आरूढ थया, तेओ परमपदने पाम्या छे, पामे 15 छे अने पामशे // 19 // .. . जो आ मंत्र अत्यन्त दुर्लभ एवा परमपदने पण आपे छे, तो तेनी पूर्वमा प्राप्त थतां आनुषंगिक एवां बीजों फळोनी गणत्री शी? // 20 // श्री जिनेश्वर देव अने श्री संघने पूजनारा जे भव्यात्माओ त्रिकरण शुद्धि वडे एक लाख नवकारनो जाप करे छे तेओ तीर्थकरनामकर्म उपार्जन करे छे // 21 // 20 हे मित्र ! जो तारुं मन नमस्कारनुं ध्यान करवामां लयलीन नथी यतुं, तो चिरकाल सुधी आचरण करेला तप, श्रुत अने चारित्रनी क्रियाओनुं शुं फळ ? // 22 // जेनी स्मृति असंख्य दुःखोना क्षयर्नु कारण गणाय छे, जे आ लोक अने परलोकनां सुख आपवामा कामधेनु समान छे अने जे दुःषम काळमां पण कल्पवृक्ष समान छे ते मंत्राधिराज केम न जपाय ! // 23 // जे अंधकार दीवाथी, सूर्यथी, चन्द्रथी के बीजा कोई पण तेजथी नाश नथी पामतो, ते (मोहरूप) अंधकार पण नमस्कारना तेज वडे नामशेष थई जाय छे // 24 // 25 1. ०पूजितस्तै हि.। 2. स्मृतो हि. / * 21