________________ [78-33] आचार्यश्रीपूज्यपादविरचितः सिद्धभक्त्यादिसंग्रहः . (नग्धरा) सिद्धानुद्भुतकर्मप्रकृतिसमुदयान् साधितात्मस्वभावान् , वन्दे सिद्धिप्रसिद्धथै तदनुपमगुणप्रग्रहाकष्टितुष्टः। सिद्धिः स्वात्मोपलब्धिः प्रगुणगुणगणोरणा)च्छादि दोषापहाराद्योग्योपादानयुक्त्या दृषद इह यथा हेमभावोपलब्धिः // 1 // नाभावः सिद्धिरिष्टा न निजगुणहतिस्तत्तपोभिर्न युक्तेरस्त्यात्मानादिबद्धः सुकृतजफलभुक् तत्क्षयान्मोक्षभागी / 10 अनुवाद जेम भट्ठी, धमण वगेरे योग्य कारणोनी युक्तिपूर्वक योजना करवाथी सुवर्णपाषाणमाथी मेल दूर थई जाय छे अने शुद्ध सुवर्णनी प्राप्ति थाय छे, तेम आत्माना ज्ञानादिक सर्वोत्कृष्ट गुणोना समुदायने आच्छादन करनारा ज्ञानावरणीयादि दोषोने ध्यानरूपी अग्निवडे दूर करवाथी शुद्ध आत्मज्ञाननी प्राप्ति थाय छे, ते सिद्धि कहेवाय छे / ते आत्म-सिद्धि जेमणे प्राप्त करी छे-अथवा जेओने ते शुद्ध आत्मस्वरूपनी प्राप्ति थई छे अने जेओ कर्मोनी प्रकृतिना समुदायथी रहित छे एवा सिद्ध भगवंतोने तेमना 15 अनुपम गुणरूप सांकळना आकर्षणथी तुष्ट थयेलो हुँ शुद्ध आत्मस्वरूपनी सिद्धि माटे वंदन करुं छु // 1 // बौद्धो मोक्ष- स्वरूप अभावरूप माने छ / आ श्लोकमां एनुं निरसन करता आचार्य कहे छे / के-मोक्षनुं स्वरूप अभावरूप नथी / कारण के एवो कोण बुद्धिमान पुरुष होय के जे पोतानो नाश करवा प्रयत्न करे ! - वैशेषिक दर्शनकार कहे छे के-बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म अने संस्कार आ आत्माना विशेष गुणो छ / ए गुणोनो नाश थई जवो तेनुं नाम मोक्ष छ / तेनुं निरसन करतां आचार्य कहे छे के-मोक्षनुं स्वरूप आत्माना गुणोनो नाश थवा रूप नथी / कारण के जो एम मानवामां आवे तो तेओर्नु तप अने व्रतपालन पण नहीं घटी शके / कारण के आत्मगुणोना नाश माटे कोई तप के व्रत पालन करतुं नथी / 25 . चार्वाको कहे छे के आत्मा जेवी कोई चीज ज नथी / केटलाक आत्माने माने छे परन्तु भूत 'अने भविष्यत्काल साथे तेनो संबन्ध मानता नथी / ते बन्नेनुं निरसन करता आचार्य कहे छे के आत्मा छे अने ते अनादिकालथी चाल्यो आवे छे / अर्थात् अनादि कालथी आत्मा कर्मोथी बंधायेलो चाल्यो आवे छे। . 20