Book Title: Namaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 387
________________ [80-35] उपा० श्रीयशोविजयजीकृत 'द्वात्रिंशद्-द्वात्रिंशिका' संदर्भः अहमित्यक्षरं यस्य, चित्ते स्फुरति सर्वदा। परं ब्रह्म ततः शब्द-, ब्रह्मणः सोऽधिगच्छति // 28 // पर सहस्राः शरदा, परे योगमुपासताम् / हन्ताहन्तमनासेव्य, गन्तारो न परं पदम् // 29 // आत्मायमहतो ध्यानात् , परमात्मत्वमश्नुते। रसविद्धं यथा तानं, स्वर्णत्वमधिगच्छति // 30 // पूज्योऽयं स्मरणीयोऽयं, सेवनीयोऽयमादरात् / अस्यैव शासने भक्ति, कार्या चेतनास्ति वः // 31 // सारमेतन्मया लब्धं, श्रुताब्धेरबगाहमात्। भक्तिर्भागवती बीजं, परमानन्दसंपदाम् // 32 // अनुवाद . अहं एवो अक्षर जेना चित्तमां सदा स्फुरे छे; ते अहं रूप शब्दब्रह्मथी परब्रह्म (मोक्ष) ने 15 प्राप्त करे छे / / 28 // अन्य लोको हजारो वर्ष सुधी योगनी उपासना करो, परन्तु अरिहंतनी उपासना कर्या विना : तेओ मोक्षने प्राप्त करी शकता नथी // 29 // जेम रसथी विद्ध एवं तांबु सुवर्ण बनी जाय छे तेम अरिहंतना ध्यानथी आ आत्मा परमात्मा बनी जाय छे // 30 // ___ आ अरिहंत पूज्य छे, स्मरणीय छे अने आदर पूर्वक सेववा योग्य छ / अने जो तमारामां चेतना-बुद्धि होय तो आ अरिहंतना ज शासनमां भक्ति राखवी जोईए // 31 // शास्त्रसमुद्रनुं अवगाहन करतां मने आ ज सार प्राप्त थयो छे के परम आनन्दरूपी संपत्तिनुं मूल कारण अरिहंतदेवनी भक्ति ज छे // 32 // 20 शा परिचय 25. . उपा. श्री यशोविजयजीकृत 'द्वात्रिंशद्-द्वात्रिंशिका' ग्रंथनी 'जिनमहत्त्वद्वात्रिंशिका' नामनी चोथी द्वात्रिंशिका (बत्रीशी) माथी प्रस्तुत संदर्भ अहीं लेवामां आव्यो छे। सत्तरमी शताब्दिमां थयेल महोपाध्याय श्रीयशोविजयजीनो विशेष परिचय 'यशोविजयस्मृतिग्रंथ 'माथी जाणी शकाय छ /

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