________________ 308 - नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत अन्याकाराप्तिहेतुर्न च भवति परो येन तेनाल्पहीनः, प्रागात्मोपात्तदेहप्रतिकृतिरुचिराकार एव ह्यमूर्तः / क्षुत्तृष्णाश्वासकासज्वरमरणजरानिष्टयोगप्रमोहव्यापत्याधुग्रदुःखप्रभवभवहतेः कोऽस्य सौख्यस्य माता // 6 // आत्मोपादानसिद्धं स्वयमतिशयवद्वीतबाधं विशालं, वृद्धिहासव्यपेतं विषयविरहितं निःप्रतिद्वन्द्वभाव / अन्यद्रव्यानपेक्षं निरुपमममितं शाश्वतं सर्वकालं, उत्कृष्टानन्तसारं परमसुखमतस्तस्य सिद्धस्य जातम् // 7 // सिद्ध अवस्थामा आत्मानुं परिमाण केटलं रहे छे, अंतिम शरीरथी ओछु रहे छे के अधिक ? ते 10 बतावे छ : जे मनुष्यशरीरथी आ जीव मुक्त थाय छे, तेने ज चरम शरीर कहे छे। मुक्त थया पछी आ जीवनो आकार चरम शरीरनाआकारथी भिन्न आकारनो न होई शके, अथवा न तो ते समस्त लोकमां व्यापक होई शके छे, अथवा न तो वटवृक्षना बीजनी माफक अणुमात्र होई शके छे, कारण के त्यां आकार बदलवान कोई कारण नथी। परन्तु अंतिम शरीरना परिमाणथी कंइक ओछो आकार होवामां कारण छे अने ते ए के संसार 15 परिभ्रमणमा आ जीवनो आकार कर्मोने कारणे बदलतो रहेतो हतो। हवे कर्मोना नष्ट थवाथी आकार फेरववा- कोई कारण नथी। तेथी मुक्त अवस्थामा जीवनो आकार अंतिम शरीरना आकारे ज रहे छे। तेनुं परिमाण अंतिम शरीरथी कंइक ओछु ज रहे छे, कारण के शरीरना जे जे भागोमां आत्माना प्रदेशो मथी तेटलं परिमाण घटी जाय छे / शरीरनी अंदर पेट, नाक, कान वगेरे पोला भागोमा जीव प्रदेशो होता नयी / तेथी ए सिद्ध थाय छे के मुक्त जीवोनुं परिमाण अंतिम शरीरना परिमाणथी कंइक ओछु छ / 20 आ ओछाप' आकारनी अपेक्षाए नथी परन्तु घनफलनी अपेक्षाए छे / तथा मुक्त अवस्थामा जीवनो आकार अंतिम शरीरना आकार समान अत्यन्त देदीप्यमान रहे छ। तथा मुक्त अवस्थामां आत्मा अमूर्त होय छे / सिद्धोमा स्पर्शादिरूप मूर्त्तत्व नथी, तेथी ते अमूर्तस्वरूप कहेवाय छे / तथा क्षुधा, तृषा, श्वास, कास (दम), ताव, मरण, वृद्धावस्था, अनिष्टयोग, मोह, अनेक प्रकारनी धापत्तिओ अने बीजा पण दारुण दुःखो जेथी उत्पन्न थाय छे एवा भव (राग-द्वेष) नो भगवाने नाश कर्यो 25 छे / आ भव नष्ट थवाथी सिद्ध भगवंतोने जे अनन्त सुखनी प्राप्ति थई छे, ते सुखना परिमाणने कोण मापी __ शके ! अर्थात् कोई न मापी शके // 6 // सिद्धोनुं सुख केq होय छे ते बतावे छे: सिद्ध परमात्माने जे सुख होय छे ते केवल आत्माथी ज उत्पन्न थयेलं होय छे; अन्य कोई प्रकृति आदिथी उत्पन्न थयेलं नथी, तेथी ते अनित्य नथी। ते सुख स्वयं अतिशय युक्त होय छे, 30 समस्त बाधाओथी रहित होय छे, अत्यन्त विशाल-अनन्त होय छे अने आत्माना समस्त प्रदेशोमां व्याप्त थईने रहे छे। ते सुख न क्यारेय ओछु थाय छे के न तो वधे छे। सांसारिक सुख विषयोथी उत्पन्न थाय छे, सिद्धोनुं सुख विषयोथी उत्पन्न थतुं नथी, परन्तु स्वाभाविक होय छे / सुखनुं प्रतिद्वन्द्वि दुःख छ / ते दुःखथी तेओ सर्वथा रहित छ / संसारी जीवोनुं सुख दुःखोथी मिश्रित छे, परन्तु