Book Title: Namaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 372
________________ 312 नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत तरुमूलयोगयुक्तानवकाशातापयोगरागसनाथान् / बहुजनहितकरचर्यानभयाननधान् महानुभावविधानान् // 9 // ईदृशगुणसंपन्नान् युष्मान् भक्त्या विशालया स्थिरयोगान् / विधिनानारतमग्र्यान् मुकुलीकृतहस्तकमलशोभितशिरसा // 10 // अभिनौमि सकलकलुषप्रभवोदयजन्मजरामरणबंधनमुक्तान् / शिवमचलमनघमक्षयव्याहतमुक्तिसौख्यमस्त्विति सततम् // 11 // जे आचार्यो वर्षाकालमा वृक्ष आदिनी नीचे योगसाधनामा रहे छे, प्रीष्मकालमा आतापना योग धारण करे छे अने शीतकालमा अभावकाशयोग (खुल्ली जग्यामा रहे) धारण करे छे, जेमनी मन, चन असे कायानी प्रवृत्ति हमेशा अनेक जीवोना हितने करनारी होय . जेओ सात प्रकारना भयथी सर्वथा 10 रहित होय छे, जेओ पापथी रहित छे, जेमना अनुभाव (प्रभाव) अने विधान (कार्यो) महान छे, एवा आचार्योने हुं सदा नमस्कार करुं छु // 9 // जे आचार्यो उपर कहेला गुणोथी संपन्न छे, जेमना मन, वचन अने काया अनेक परिषहो आववा छतां पण निरंतर विधिपूर्वक स्थिर रहे छे, अनेक गुणोने धारण करवाथी जेओ सदा अप्रय-प्रधान छ। अने अशुभ कर्मोना उदयथी प्राप्त थनार जन्म, मरण, जरा वगेरे सर्व दोषोना संबंधथी जेओ रहित 15 छे, एवा आचार्योने हुँ अति भक्तिथी विधिपूर्वक अंजलिबद्ध करकमलथी शोभता मस्तक वडे नर्मु छ / अथी मने शिव, अचल, निष्पाप, अक्षय, बाधाओथी रहित अg मुक्तिसुख प्राप्त थाओ // 10-11 // TTumin TITH DURATLAMA ELSALMER IAN ANI TURUIT / / VAVT

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