Book Title: Namaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 376
________________ 316 नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत वामा शस्तोदये पक्षे, सिते कृष्णे तु दक्षिणा।। त्रीणि त्रीणि दिनानीन्दुः, सूर्ययोरुदयः शुभः // 2 // शुक्लप्रतिपदो वायुश्चन्द्रोऽथार्के त्र्यहं त्र्यहम्। वहन् शस्तोऽनया वृत्त्या, विपर्यासे तु दुःखदः // 3 // शशाङ्केनोदये वायोः, सूर्येणास्तं शुभावहम्। उदये रविणा त्वस्य, शशिनास्तं शुभावहम् // 4 // केषाश्चिन्मते वारक्रमेण सूर्यचन्द्रोदयः, तत्र रविभौमगुरुशनिषु सूर्योदयः सोमबुधशुक्रेषु चन्द्रोदयः। केषाश्चित् संक्रान्तिकमाधथा ‘मेसविसे रविचन्दा' इत्यादि। केषाश्चिञ्चन्द्रराशिपरावर्तक्रमेण "सार्द्ध घटीद्वयं नाडिरेकैकार्कोदयाद्वहेत्। अरघट्टघटीभ्रान्ति न्यायो नाड्यः पुनः पुनः॥५॥ षट्त्रिंशद् गुरुवर्णानां, या वेला भणने भवेत्। सा वेला मरुतो नाड्या, नाड्यां संचातो लगेत् // 6 // पञ्चतत्त्वानि चैवं "ऊर्ध्वं वह्निरधस्तोयं, तिरश्चीनः समीरणः / भूमिमध्यपुटे व्योम, सर्वगं वहते पुनः॥७॥ वायोर्वह्वेरपां पृथ्व्या, व्योम्नस्तत्त्वं वहेत् क्रमात्। यहन्त्योरुभयोर्नाड्यो, तिव्योऽयं क्रमः सदा // 8 // पृथ्व्याः पलानि पञ्चाश-, श्चत्वारिंशत्तथाम्भसः। अग्नेस्त्रिंशत्पुनर्वायो, विंशतिर्नभसो दश // 9 // तत्त्वाभ्यां भूजलाभ्यां स्या, च्छान्तः कार्ये फलोन्नतिः। दीप्ता स्थिरादिके कृत्ये, तेजो-चायवम्बरैः शुभम् // 10 // .. जीवितव्ये जये लामे, सस्योत्पत्तौ च वर्षणे। पुत्रार्थे युद्धप्रश्ने च, गमनागमने तथा // 11 // पृथ्व्यप्तत्वे शुमे स्यातां, वह्निवातौ च नो शुभौ। अर्थसिद्धिः स्थिरोळें तु, शीघ्रमंभसि निर्दिशेत् // 12 // युग्मम् // पूजाद्रव्यार्जनोद्वाहे, दुर्गादिसरिदाक्रमे। गमागमे जीविते च, गृहे क्षेत्रादिसंग्रहे // 13 // क्रयविक्रयणे वृष्टौ, सेवाकृषिद्विषजये। विद्यापट्टाभिषेकादौ, शुमेऽर्थे च शुभः शशी // 14 // युग्मम् // प्रश्ने प्रारंभणे वापि, कार्याणां वामनासिका।। पूर्णा वायोः प्रवेशश्चेत्, तदा सिद्धिरसंशयम् // 15 // बद्धानां रोगितानां च, प्रभ्रष्टानां निजात्पदात्। प्रश्ने युद्धविधौ वैरि-, संगमे सहसा भये // 16 // स्नाने पानेऽशने नष्टा-, न्वेषे पुत्रार्थमैथुने / 35 विवादे दारुणार्थे च, सूर्यनाडिः प्रशस्यते // 17 // युग्मम् // कचित्त्वेवम् "विद्यारम्मे च दीक्षायां, शस्त्राभ्यासविवादयोः / राजदर्शनगीतादौ, मन्त्रयन्त्रादिसाधने // 18 // सूर्यनाड़ी शुभा। 20

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