Book Title: Namaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 381
________________ विभाग] 'श्राद्धविधि' प्रकरणान्तर्गतसन्दर्भः 321 शोक करनार, मुसाफर, खेडुत, माळी, रहेंट चलावनार, घंटी प्रमुख यंत्रने चलावनार, सलाट, घांची, धोबी, कुंभार, लुहार, सूथार, जुगारी, शस्त्र तैयार करनार, कलाल, माछी, कसाई, शिकारी, घातपात करनार, परस्त्रीगमन करनार, चोर, धाड पाडनार, इत्यादि लोकोने परंपराए पोतपोताना निंद्य व्यापारने विषे प्रवृत्ति कराववानो तथा बीजा पण निरर्थक अनेक दोष लागे छे। श्रीभगवती सूत्रमा कां छे के“धर्मी पुरुषो जागता अने अधर्मी पुरुषो सता होय ते सारा जाणवा। एवी रीते वत्स देशना राजा 5 शतानिकनी बहेन जयंतीने श्रीमहावीर स्वामीए कयुं छे।" कई नाडी अने क्या तत्त्वथी शुं लाभ थाय तेनो विचार ___ निद्रा जती रहे त्यारे स्वरशास्त्रना जाण पुरुषे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु अने आकाश ए पांचे तत्त्वोमा क्युं तत्त्व श्वासोच्छ्वासमां चाले छे, ते तपासबुं / कयुं छे के :--"पृथ्वीतत्त्व अने जलतत्त्वने विषे निद्रानो त्याग करवो शुभकारी छे, पण अग्नि, वायु अने आकाश तत्त्वोने विषे तो ते दुःखदायक छ। 10 शुक्लपक्षना प्रातःकालमा चन्द्रनाडी अने कृष्णपक्षना प्रातःकालमा सूर्यनाडी सारी जाणवी। शुक्लपक्षमा अने कृष्णपक्षमा त्रण दिवस--एकम, बीज अने त्रीज सुधी प्रातःकालमा अनुक्रमे चन्द्रनाडी अने सूर्यनाडी शुभ जाणवी / अजवाळी पडवेथी मांडीने पहेला त्रण दिवस (त्रीज) सुधी चन्द्रनाडीमा वायुतत्त्व वहे, ते पछी त्रण दिवस (चोथ, पांचम अने छठ) सुधी सूर्यनाडीमां वायुतत्त्व वहे; ए रीते भागळ चाले तो शुभ जाणवू, पण एथी उलटुं एटले पहेला त्रण दिवस सूर्यनाडीमां वायुतत्त्व अने पाछला त्रण दिवसमां 15 चन्द्रनाडीमा वायुतत्त्व ए प्रमाणे चाले तो दुःखदायी जाणवू / चन्द्रनाडीमां वायुतत्त्व चालतां छतां जो सूर्यनो उदय थाय तो सूर्यना अस्त समये सूर्यनाडी शुभ जाणवी तथा जो सूर्यने उदये सूर्यनाडी वहेती होय तो अस्तने समये चन्द्रनाडी शुभ जाणवी / " बार, संक्रांति अने चन्द्रराशिमा रहेल नाडीनुं फल केटलाकना मते वारने अनुक्रमे सूर्य चन्द्रनाडीना उदयने अनुसरी फल जणावेल छे ते आ 20 रीते :-'रवि, मंगल, गुरु अने शनि आ चार वारने विषे प्रातःकालमा सूर्यनाडी तथा सोम, बुध अने शुक्र एत्रण वारने विषे प्रातःकालमा चन्द्रनाडी वहेती होय ते सारी'। केटलाकना मते संक्रांतिना अनुक्रमथी सूर्य अने चन्द्रनाडीनो उदय कहेलो छे। ते आ रीते :- 'मेष संक्रान्ति विषे प्रातःकालमा सूर्यनाडी अने वृषभ संक्रांतिने विषे चन्द्रनाडी सारी इत्यादि / ' केटलाकना मते चन्द्रराशिना परावर्तनना क्रमथी नाडीनो विचार छे, जेम के–'सूर्यना उदयथी मांडीने एकेक नाडी अढी घडी निरंतर वहे छ। रहेंटना घडा 25 जेम अनुक्रमे वारंवार भराय छे अने खाली थाय छे तेम नाडीओ पण अनुक्रमे फरती रहे छे। छत्रीश गुरु वर्ण (अक्षर) नो उच्चार करता जेटलो काळ लागे छे, तेटलो काल प्राणवायुने एक नाडीमाथी बीजी . नाडीमा जता लागे छ / ' पांच तत्त्वोनुं स्वरूप, क्रम, काल, तथा तेनुं फल - एवी रीते पांच तत्त्वोर्नु पण स्वरूप जाणवू, ते आ प्रमाणे:-"अग्नितत्त्व ऊंचु, जलतत्त्व 30 नीचुं, वायुतत्त्व आईं, पृथ्वीतत्त्व नासिकापुटनी अंदर अने आकाशतत्त्व सर्व बाजु वहे छे। वहेती सूर्य / अने चन्द्रनाडीमां अनुक्रमे वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, अने आकाश ए पांच तत्त्वो वहे छे अने ए क्रम हरहमेशनो जाणवो। पृथ्वी तत्त्व पचास, जलतत्त्व चालीस, अमितत्व त्रीस, वायुतत्त्व वीस अने आकाशतत्त्व दस पळ वहे छे / पृथ्वी अने जलतत्त्व वहेता होय त्यारे शान्त्यादि कार्योमां सुंदर फळ प्राप्त थाय छे। 35

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