Book Title: Namaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal
________________ 314 नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत एष पञ्चनमस्कारः, सर्वपापत्रणाशनः / मंगलानां च सर्वेषां, प्रथमं मङ्गलं भवेत् // 7 // श्रीमदर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायाः सर्वसाधवः / कुर्वन्तु मंगलाः(लं) सर्वे, निर्वाणपरमश्रियम् // 8 // सर्वान् जिनेन्द्रचन्द्रान्, सिद्धानाचार्यपाठकान् साधून् / रत्नत्रयं च वन्दे, रत्नत्रयसिद्धये भक्त्या // 9 // पान्तु श्रीपादपमानि, पश्चानां परमेष्ठिनाम् / / लालितानि सुराधीश-चूडामणिमरीचिभिः // 10 // प्रातिहार्जिनान् सिद्धान्, गुपैः सूरीन् स्वमातृभिः / पाठकान् विनयैः साधून, योगारिष्टमिः स्तुवे // 11 // आ पंच-नमस्कार मंत्र बधा पापोने नाश करनार छे अने सर्व मंगलोमा मुख्य मंगल छे // 7 // अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय अने सर्व साधु आ पांचे परमेष्ठी मंगलरूप छे। तेओ मने मोक्षरूपी परम लक्ष्मी आपे // 8 // हुँ रत्नत्रय प्राप्त करवा माटे अति भक्तिथी बधा अरिहंतोने, सिद्धोने, आचार्योंने, उपाध्यायोने 15 साधुओने अने रत्नत्रयने नमस्कार करूं छु // 9 // ___ इन्द्रोना मुकुटोमा जडेला रत्नना किरणोथी रंजित एवा पांचे परमेष्ठिओना चरण-कमल मारी रक्षा करे // 10 // आठ प्रातिहार्योथी सहित अरिहंतो, अनन्तज्ञानादि आठ गुणोथी सहित सिद्धो, अष्टप्रवचनमाताथी सहित आचार्यो, विनयथी सहित उपाध्यायो अने आठ योगांगोथी सहित साधुओनी हुं स्तुति करुं छु // 11 // 20 परिचय आचार्यवर्य श्रीपूज्यपाद विरचित 'दशभक्त्यादि संग्रह' सकल दि० जैन पंचायत, अजमेरथी वीर सं० 2473 मा प्रकाशित थयेल, तेमाथी सिद्धभक्ति, आचार्यभक्ति तथा पंचगुरुभक्ति आ त्रण स्तोत्रो, अत्रे लेवामां आव्यां छे। श्री पूज्यपादस्वामी दिगम्बर जैन परंपरामा एक प्रौढ अने प्रकाण्ड विद्वान् आचार्य थई गया छ। 25 तेओ विक्रमनी छठी शताब्दिमां थया छ / तेमना 'सर्वार्थसिद्धि' 'समाधितंत्र' वगेरे ग्रंथो बहुज प्रसिद्ध छ। KJ
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