Book Title: Namaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal
________________ 306 [संमत नमस्कार स्वाध्याय ज्ञाता दृष्टा स्वदेहमितिरुपसमाहारविस्तारधर्मा, ध्रौव्योत्पत्तिव्ययात्मा स्वगुणयुत इतो नान्यथा साध्यसिद्धिः // 2 // स त्वन्तर्वाधहेतुप्रमवविमलसद्दर्शनज्ञानचर्या, संपद्धतिप्रघातक्षतदुरिततया, व्यञ्जिताचिन्त्य सौरः (सूरः)। 5 सांख्य दर्शनकार माने छे के आत्मा कोनो कर्ता नथी / तेनुं निरसन करता आचार्य कहे छे के आत्मा स्वयं ज पोताना कर्म करे छे बने तेनुं शुभाशुभ फल भोगवे छे अने कर्मोनो सर्वथा नाश करी मोक्षमां जाय छे / तथा आ आत्मा ज्ञाता अने द्रष्टा छे-ज्ञानोपयोग अने दर्शनोपयोगथी युक्त छ। सांख्य, मीमांसा, वेदान्त अने योग मतवाळाओ आत्माने सर्व-व्यापक माने छे / तेनां निरसनसां. 10 आचार्य कहे छे के-आत्मानुं परिमाण पोताना शरीर प्रमाण ज होय छ / सांख्य, मीमांसक, वेदान्ती अने वैशेषिक आत्माने सर्वथा नित्य माने छ / बौद्धो आत्माने उत्पाद अने विनाशमय माने छ / तेना निरसनमा आचार्य कहे छे के आत्मा उत्पाद, व्यय अने ध्रौव्य स्वरूप छ। आत्मा पोताना ज्ञानादि गुणोथी युक्त छे / पोताना गुणोथी सुशोभित होवाना लीधे ज तेने पोताना स्वरूपनी प्राप्ति अर्थात् मोक्षनी प्राप्ति थाय छे / ओ रीते पूर्वोक्त गुणोवाळो आत्मा मानवामां 15 आवे तो ज मोक्षरूप साध्यनी सिद्धि थाय, अन्यथा नहि // 2 // . ... दर्शनमोहनीय कर्मनो उपशम, क्षय अने क्षयोपशम यवो ए सम्यग्दर्शन उत्पन्न करवा माटे अंतरङ्ग कारण छे, तथा गुरुनो उपदेश, जिनबिंब दर्शन, जातिस्मरण वगेरे बाह्य कारण छे। आ अंतरङ्ग अने बाह्य कारण मलवाथी सम्यग्दर्शन प्रगट थाय छे / सम्यग्ज्ञान उत्पन्न थवा माटे दर्शनमोहनीय अने ज्ञाना वरण कर्मनो क्षयोपशमादिक थवो अंतरङ्ग कारण छे अने गुरुनो उपदेश, स्वाध्याय, . वगेरे बाह्य कारण 20 छ। सम्यक्चारित्र उत्पन्न थवा माटे मोहनीय कर्मनो क्षयोपशमादिक थवो अंतरङ्ग कारण छे अने गुरुनो उपदेश, स्वाध्याय, वगेरे बाह्य कारण छ। आ अंतरंग अने बहिरंग कारणोना मळवाथी सम्यग्ग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्र प्रगट थाय छे / अने कोनो विशेष क्षय के क्षयोपशम थवाथी आ सम्यग्दर्शन, ज्ञान अने चारित्र अत्यन्त निर्मल थाय छ / निर्मल सम्यग्दर्शन, ज्ञान अने चारित्र आत्मानी संपत्ति छ। कर्मोने नाश करवा माटे आ ज रत्नत्रयरूप संपत्ति आत्मानुं शस्त्र* छ / आ रत्नत्रयरूप 25 शस्त्रना प्रबल प्रहारथी घाति कर्मरूपी पाप अतिशीघ्र नष्ट थई जाय छ / * बीजो अर्थ रत्नत्रयरूप संपत्ति ते (आत्मसूर्यना) किरणोनो समूह छ / ते बडे दुरितांधकारनो नाश करेल होबाथी आत्मा देदीप्यमान अचिन्त्य सूर्य (सहश) छे / ते केवलज्ञान, केवलदर्शन, श्रेष्ठ सुख, महावीर्य, क्षायिक सम्यक्त्वलब्धि, क्षायिक दान, वायिक लाम, क्षायिक भोग, क्षायिक उपभोग (ज्योतिर्वातायनादि 1) आदि स्थिर (क्षायिक) अने. अद्भुत एवा 30 परम गुणोवडे (सदा) प्रकाशे छ /
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