________________ 304 नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत 10 इतीमं० भव्यजीवानां ऐहिक्यः सर्वा अपि शुद्धगोत्रकलत्र-पुत्र-मित्र-धन-धान्यजीवित-यौवन-रूपाऽरोग्य-यशःपुरस्सराः सर्वजनानां संपदः परभागजीवितशालिन्यः सदुदर्काः सुसंमुखीभवन्ति / किं बहुना ? . 11 इतीम० भव्यजीवानां आमुभिक्यः सर्वमहिमास्वर्गापवर्गश्रियोऽपि क्रमेण 5 यथेष्टं(च्छं) स्वयं स्वयंवरणोत्सवसमुत्सुका भवन्तीति / सिद्धिः(द्धः) श्रेयः समुदयः। यथेन्द्रेण प्रसन्नेन, समादिष्टोऽर्हतां स्तवः। तथाऽयं सिद्धसेनेन, प्रपेदे संपदां पदम् // 1 // . इति शक्रस्तवः॥ . परिचय 10 श्री जैनधर्मप्रसारक सभा, भावनगर तरफथी प्रकाशित 'श्री जिनसहस्रनाम स्तोत्र' नामक पुस्तकमां अंते श्री सिद्धसेन दिवाकर कृत 'शकस्तव' आपवामां आव्युं छे, ए पुस्तकमांथी प्रस्तुत संदर्भ : अहीं आपेल छे। आ रचना अर्थनी दृष्टिए परम गंभीर होवाथी एनो अनुवाद विशेष प्रयत्न मागे छे, अत्यारे केवळ मूल ज अहीं प्रगट करीए छीए, भविष्यमां तेने अर्थ सहित अलग पुस्तक तरीके प्रगट करवानी 15 भावना राखीए छीए। श्री अरिहंत परमात्मानुं स्वरूप शब्दोथी पर छे / शब्दो ते रूपने संपूर्णरीते व्यक्त करी शके तेम नथी / पूर्वना महर्षिओए ते रूपने शब्दोवडे समजाववा माटे स्तोत्रादिरूपे अनेक प्रयत्नो कर्या छे। ए शब्दोना आलंबन वंडे ए महान रूपनी कांडक झांखी थाय छ। पछीनं स्वरूप तो केवळ अनुभव वडे गम्य छ। शब्दरूपे अरिहंतना स्वरूपने व्यक्त करनारां भक्ति प्रधान स्तोत्रोमां 'शकस्तव' नुं स्थान 20 मोखरे छे / ग्रंथकारे ते दिव्यरूपने शब्दोमां लाववानो सर्वश्रेष्ठ प्रयत्न कर्यो छे / / आ स्तोत्र मंत्रराजगर्भित छ। एना अगिआर आलावा ए अगिआर. मंत्रो छ / ए स्तोत्रना जपन, पठन, गुणन अने अनुप्रेक्षण, फळ पण प्रन्थकारे बहु ज सुंदर रीते बताव्युं छे / आ स्तोत्र अद्भुत छे, प्रत्येक मुमुक्षुमाटे ते अत्यंत उपयोगी छ। एर्नु रहस्य अने एनाथी प्राप्त थता लाभो एनी आराधनाथी वधु स्पष्ट थाय तेम छ / अंतिम श्लोक उपरथी एम लागे छे के इन्द्रे प्रसन्न थईने श्रीसिद्धसेनसूरिने आ स्तोत्र आप्युं हो। श्रीसिद्धसेन दिवाकर पछीना स्तोत्रकारोए आ स्तोत्र- ओछा वत्ता अंशे अनुकरण कर्यु छे / / कलिकालसर्वज्ञकृत योगशास्त्रना बीजा श्लोकनी टीकामां आ स्तोत्रना केटलांक विशेषणो अनुष्टुप् छंदमां गूंथवामां आवेला छे / / 25