Book Title: Namaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal
________________ 302 नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत स्वरूपिणे भावाभावविवर्जिताय अस्तिनास्तिद्वयातीताय पुण्यपापविरहिताय सुखदुःखविविक्ताय व्यक्ताव्यक्तस्वरूपाय अनादिमध्यनिधनाय नमोऽस्तु मुक्तीश्वराय मुक्तिस्वरूपाय // 6 // ॐ नमोऽर्हते निरातङ्काय निःसङ्गाय निःशङ्काय निर्मलाय निर्द्वन्द्वाय निस्तरङ्गाय निरूमये निरामयाय निष्कलङ्काय परमदैवताय सदाशिवाय महादेवाय शङ्कराय महेश्वराय 5 महावतिने महायोगिने महात्मने पञ्चमुखाय मृत्युञ्जयाय अष्टमूर्तये भूतनाथाय जगदानन्दाय जगत्पितामहाय जगद्देवाधिदेवाय जगदीश्वराय जगदादिकन्दाय जगद्भास्वते जगत्कर्मसाक्षिणे जगच्चक्षुषे त्रयीतनवे अमृतकराय शीतकराय ज्योतिश्चक्रचक्रिणे महाज्योतिर्योतिताय महातमःपारेसुप्रतिष्ठिताय स्वयंकर्ने स्वयंहः स्वयंपालकाय आत्मेश्वराय नमो विश्वात्मने // 7 // ___ॐ नमोऽहते सर्वदेवमयाय सर्वध्यानमयाय सर्वज्ञानमयाय सर्वतेजोमयाय सर्वमंत्रमयाय 10 सर्वरहस्यमयाय सर्वभावाभावाजीवाजीवेश्वराय अरहस्यरहस्याय अस्पृहस्पृहणीयाय अचिन्त्यचिन्त नीयाय अकामकामधेनवे असङ्कल्पितकल्पद्रमाय अचिन्त्यचिन्तामणये चतुर्दशरज्ज्वात्मकजीवलोकचूडामणये चतुरशीतिलक्षजीवयोनिप्राणिनाथाय पुरुषार्थनाथाय परमार्थनाथाय अनाथनाथाय जीवनाथाय देवदानवमानवसिद्धसेनाधिनाथाय // 8 // ___ॐ नमोऽहते निरञ्जनाय अनन्तकल्याणनिकेतनकीर्तनाय सुगृहीतनामधेयाय 15 (महिमामयाय) धीरोदात्तधीरोद्धतधीरशान्तधीरललितपुरुषोत्तमपुण्यश्लोकशतसहस्रलक्षकोटिवन्दितपादारविन्दाय सर्वगताय // 9 // - ॐ नमोऽहते सर्वसमर्थाय सर्वप्रदाय सर्वहिताय सर्वाधिनाथाय कस्मैचन क्षेत्राय पात्राय तार्थाय पावनाय पवित्राय अनुत्तराय उत्तराय योगाचार्याय संप्रक्षालनाय प्रवराय आग्रेयाय वाचस्पतये माङ्गल्याय सर्वात्मनीनाय सर्वार्थाय अमृताय सदोदिताय ब्रह्मचारिणे तायिने दक्षिणीयाय 20 निर्विकाराय वज्रर्षभनाराचमूर्तये तत्त्वदर्शिने पारदर्शिने परमदर्शिने निरुपमज्ञानबलवीर्यतेजः शक्त्यैश्वर्यमयाय आदिपुरुषाय आदिपरमेष्ठिने आदिमहेशाय महाज्योतिःस(स्त)त्वाय महार्चिधनेश्वराय महामोहसंहारिणे महासचाय महाज्ञामहेन्द्राय महालयाय महाशान्ताय महायोगीन्द्राय अयोगिने महामहीयसे महाहंसाय हंसराजाय महासिद्धाय शिवमचलमरुजमनन्तमक्षयमव्यावाधमपुनरावृत्ति महानन्दं महोदयं सर्वदुःखक्षयं कैवल्यं अमृतं निर्वाणमक्षरं परब्रह्म निःश्रेयसमपुनर्भवं 25 सिद्धिगतिनामधेयं स्थानं संप्राप्तवते चराचरं अवते नमोऽस्तु श्रीमहावीराय त्रिजगत्स्वामिने श्रीवर्धमानाय // 10 // ॐ नमोऽर्हते केवलिने परमयोगिने (भक्तिमार्गयोगिने) विशालशासनाय सर्वलब्धिसम्पन्नाय निर्विकल्पाय कल्पनातीताय कलाकलापकलिताय विस्फुरदुरुशुक्लध्यानाग्निनिर्दग्धकर्मबीजाय प्राप्तानन्तचतुष्टयाय सौम्याय शान्ताय मङ्गलवरदाय अष्टादशदोषरहिताय संसृतविश्व30 समीहिताय स्वाहा ॐ ह्रीं श्री अर्ह नमः // 11 //
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