Book Title: Namaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

Previous | Next

Page 346
________________ 290 [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय श्रीवत्सलाञ्छनः श्रीमानच्युतो नरकान्तकः। विष्वक्सेनश्चक्रपाणिः, पद्मनाभो जनार्दनः // 102 // श्रीकण्ठः शङ्करः शम्भुः, कपाली वृषकेतनः / मृत्युञ्जयो विरूपाक्षो, वामदेवत्रिलोचनः॥१०३॥ उमापतिः पशुपतिः, स्मरारित्रिपुरान्तकः। अर्धनारीश्वरो रुद्रो, भवो भर्गः सदाशिवः // 104 // जगत्कर्ताऽन्धकारातिरनादिनिधनो हरः। महासेनस्तारकजिद्गणनाथो विनायकः // 105 // विरोचनो वियद्रलं, द्वादशात्मा विभावसुः / द्विजाराध्यो वृहद्भानुश्चित्रभानुस्तनूनपात् // 106 // द्विजराजः सुधारोचिरौषधीशः कलानिधिः। नक्षत्रनाथः शुभ्रांशुः, सोमः कुमुदबान्धवः // 107 // लेखर्षभोऽनिलः पुण्यजनः पुण्यजनेश्वरः / धर्मराजो भोगिराजः, प्रचेता भूमिनन्दनः // 108 // सिंहिकातनयश्छायानन्दनो बृहतीपतिः।' पूर्वदेवोपदिष्टा च, द्विजराजसमुद्भवः॥ 109 // 9 अथ बुद्धशतम् बुद्धो दशबलः शाक्यः, षडभिशस्तथागतः। समन्तभद्रः सुगतः, श्रीधनो भूतकोटिदिक् // 110 // सिद्धार्थो मारजिच्छास्ता, क्षणिकैकसुलक्षणः। बोधिसत्त्वो निर्विकल्पदर्शनोऽद्धयवाद्यपि // 111 // महाकृपालु रात्म्यवादी सन्तानशासकः।। सामान्यलक्षणचणः, पंचस्कन्धमयात्महक् // 112 // .. भूतार्थभावनासिद्ध,श्चतुर्भूमिकशासनः।। चतुरार्यसत्यवक्ता निराश्रयचिदन्वयः // 113 // . योगो वैशेषिकस्तुच्छाभावभित् षट्पदार्थदृक् / नैयायिकः षोडशार्थवादी पञ्चार्थवर्णकः // 114 // शानान्तराध्यक्षबोधः, समवायवशार्थभित्।। भुक्तैकसाध्यकर्मान्तो, निर्विशेषगुणामृतः॥११५॥ सांख्यः समीक्ष्यः कपिलः, पञ्चविंशतितत्त्ववित् / व्यक्ताव्यक्तक्षविज्ञानी, शानचैतन्यभेददृक् // 116 // अस्वसंविदितज्ञानवादी सत्कार्यवादसात्। त्रि-प्रमाणोऽक्षप्रमाणः, स्याद्वाहंकारिकाक्षदिक् // 117 // क्षेत्रक्ष आत्मा पुरुषो, नरो ना चेतनः पुमान् / अकर्ता निर्गुणोऽभूत्रों, भोक्ता सर्वगतोऽक्रियः / / 118 / / दृष्टा तटस्थः कूटस्थो, साता निर्बन्धनोऽभवः / / बहिर्विकारो निर्मोक्षा, प्रधानं बहुधानकम् // 119 // .. ..

Loading...

Page Navigation
1 ... 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398