________________ विभाग] नमस्कारमाहात्म्यम् श्री-ही-धृति-कीर्ति-बुद्धि-लक्ष्मी-लीला-प्रकाशकः / जीयात् पञ्च-नमस्कारः, स्वःसाम्राज्य-शिवप्रदः // 15 // 'सिद्धसेन -सरस्वत्या, सरस्वत्यापगातटे / 'श्रीसिद्धचक्र(नमस्कार) माहात्म्यं,' गीतं श्रीसिद्धपत्तने // 16 // इति श्रीसिद्धसेनाचार्यविरचिते श्रीनमस्कारमाहात्म्ये अष्टमः प्रकाशः समाप्तः॥ 5 10 श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि अने लक्ष्मीनी लीलाने प्रकाश करनार (आपनार) तथा स्वर्गनुं साम्राज्य अने मोक्षने आपनार पंच-नमस्कार मंत्र निरंतर जयवंत रहो // 15 // ___ श्री सरस्वती नदीने कांठे आवेल श्री सिद्धपुर नगरमां श्री सिद्धसेनसूरिनी वाणीए आ श्री सिद्धचक्रनुं (नमस्कारर्नु) माहात्म्य गायुं छे // 16 // परिचय श्री 'नमस्कार माहात्म्य 'नी एक पुस्तिका श्री केसरबाई ज्ञानमंदिर, पाटण, तरफथी प्रकाशित थयेली छे / तेमां मूल अने भावार्थ बंने छे / तेनुं संपादन प.पू. पं. श्री कान्तिविजयजी गणिवरे करेल छे। ए पुस्तिकाने सामे राखीने प्रस्तुत संदर्भ तैयार करेल छ। - आ कृतिना रचयिता श्री सिद्धसेनसूरि छे। तेओ अंतिम श्लोकमां कहे छे के “सरस्वती नदीना तीरे सिद्धपत्तन (सिद्धपूर-पाटण) नगरमां आ 'नमस्कार माहात्म्य' श्री सिद्धसेनसूरिनी वाणीए गायुं हतुं / " 15 ____ आ ग्रंथनी रचना स्वयं कही आपे छे के तेना निर्माता कोई महान ज्योतिर्धर महापुरुष होवा जोईए; ते विना आवी श्रद्धारसनी महानदी समी आ कृतिनो प्रभव अशक्य छ। साहित्य, अध्यात्म, योग वगेरेनी दृष्टिए आ रचना स्वयं परिपूर्ण भासे छे। - आ ग्रंथना कर्ता विषे अधिक जाणवामां आव्यु नथी। संभव छे के आ सिद्धसेनसूरि ते सिद्धसेन 'दिवाकर अथवा श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रनी 'सिद्धसेनी' टीकाना कर्ता श्री सिद्धसेनाचार्य होवा जोईए। 20 जाणे अष्टकर्मने छेदवा माटे ज न बनाव्या होय एवा आठ प्रकाशोमां आ कृति रचायेली छ। प्रथम प्रकाशमां ग्रंथy मंगल अने नवकारनुं प्रथम पद, द्वितीय प्रकाशमां द्वितीयपद, तृतीयमा तृतीय, चतुर्थमां चतुर्थ अने पंचममां पंचमपद गवायुं छे। अंतिम चार प्रकाशोमां नवकारने लगता अन्य सर्व विषयोने संक्षेपवामां आव्या छ। आ कृतिनी अनेक विशेषताओ छे / तेमांनी एक विशेषता ए छे के नवकारना प्रथम 35 25 अक्षरोमांना प्रत्येक अक्षर पर ए कृतिमां स्वतंत्र चिंतन छ / नमस्कार-मंत्रने संक्षेपमां जाणवा इच्छनाराओ माटे आ कृति अत्यंत उपयोगी छ / करकजादEYA C (Ga EARN CTED