Book Title: Namaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 325
________________ 269 विभाग] जिनसहस्रनामस्तोत्रम् नमस्ते समुद्गीर्णसामायिकाय, नमः सर्वदैव विधाऽमायिकाय / नमस्सवेसावद्ययोगोज्झिताय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 65 // नमस्ते मनःपर्यवज्ञानशालिन् !, नमश्चारुचारित्रपावित्र्यमालिन् / / नमो नाथ ! षड्जीवकायावकाय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 66 // नमस्ते समुद्यद्विहारक्रमाय, नमकर्मवैरिस्फुरद्विक्रमाय।। नमः स्वीयदेहेऽपि ते निर्ममाय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 67 // नमो ग्राम एकैकरात्रोषिताय, नमः पत्तने पञ्चरात्रोषिताय / नमो भावशुद्धषणापोषिताय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 68 // . नमस्तुल्यरूपाय रात्रौ दिवा वा, नमस्तुल्यरूपाय तेऽन्तर्वहिश्च / (नमस्तुल्यचित्ताय दुःखे सुखे वा), नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते / / 69 // नमस्तुल्यचित्ताय मित्रे रिपौवा, नमस्तुल्यचिचाय लोष्ठे मणौ वा / नमस्तुल्यचित्ताय गालौ स्तुतौ वा, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 70 // 10 सामायिकवतनो उच्चार करता आपने नमस्कार थाओ। सर्वदा त्रिविधे अमायी एवा आपने . नमस्कार थाओ। सर्व साँवद्ययोगोथी रहित एवा आपने नमस्कार थाओ॥६५॥ * दीक्षासमये प्राप्त थयेल मनःपर्यवज्ञान वडे शोभता हे प्रभो ? आपने नमस्कार थाओ। मनोहर 15 चारित्रनी पवित्रताथी शोभता हे प्रभो ? आपने नमस्कार थाओ। षट्जीवनिकाय रक्षण करनार हे नाथ ! आपने नमस्कार थाओ // 66 // उद्यत विहारनी परंपरावाळा आपने नमस्कार थाओ। कर्मवैरीनो नाश करवामां प्रखर पराक्रमवाळा आपने नमस्कार थाओ। पोताना देह उपर पण ममता विनाना आपने वारंवार नमस्कार थाओ॥ 67 // गाममा एक एक रात्रि रहेता आपने नमस्कार थाओ। नगरमां पांच पांच रात्रि रहेता आपने नमस्कार थाओ / भावशुद्ध एषणा वडे पोषित एवा आपने नमस्कार थाओ // 68 // रात्रिमा के दिवसमां समभाववाळा आपने नमस्कार थाओ। आंतरिक अने बाह्य वस्तुओमां समान भाववाळा आपने नमस्कार थाओ। (सुखमां के दुःखमां समान चित्तवाळा आपने नमस्कार थाओं)॥६९ // .. शत्रु के मित्रमां, लोष्ठ (ढेफु) के मणिमां समान चित्तवाळा आपने नमस्कार थाओ। निंदा के 25 स्तुतिमां सम चित्तवाळा आपने नमस्कार थाओ // 70 // 20 1 सावद्य योगोनु मन-वचन-कायाथी करण-'कारापण-अनुमोदन'।

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