Book Title: Namaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 333
________________ 277 5.. विभाग] जिनसहस्रनामस्तोत्रम्। नमः केवलज्ञानदृग्लक्षणाय, नमोऽनुक्रमकैकबोधक्षणाय / नमो ज्ञातदृष्टाखिलार्थप्रथाय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 113 // नमस्तेऽनुपाख्येयसौख्याह्वयाय, नमः स्वोत्थितानन्तवीर्योदयाय / नमोर्खाग्दृशां वामनोऽगोचराय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 114 // नमो देहभृद्देहदेवालयाय, नमस्तेज़ चैत्याय चैतन्यमूर्त्या। नमः स्वाविभेदेन दक्षेक्षिताय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 115 // नमो निर्विकाराय नीरञ्जनाय, नमो योगिलक्ष्याय नियंजिताय / नमस्तेऽनुमानोपमानातिगाय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 116 // नमः स्थापनाद्रव्यनामात्मकाय, नमस्ते पुनानाय कालत्रयेऽस्मान् / नमो भागधेयाय भव्याङ्गभाजां, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 117 // नमस्ते प्रभो ! श्रीयुगादीश्वराय, नमस्तेऽजिताय प्रभो! शम्भवाय / / नमो नाथ ! सैद्धार्थतीर्थेश्वराय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 118 // 10 केवलज्ञान ने केवलदर्शन स्वरूप आपने नमस्कार थाओ। क्रमसर (समयांतरे) ज्ञानदर्शनना बोध (उपयोग) वाळा आपने नमस्कार थाओ। सर्व पदार्थोना विस्तार (सर्व पर्यायो) ने जाणनारा अने जोनारा एवा आपने वारंवार नमस्कार थांओ // 113 // 15 जेमनुं सुख वाणीद्वारा कही शकाय तेवू नथी एवा आपने नमस्कार थाओ। आत्मामांथीं ज . उत्पन्न थयेला अनन्तवीर्यना उदयवाळा आपने नमस्कार थाओ। छद्मस्थोनी वाणीने अने मनने अगोचर . एवा आपने नमस्कार थाओ // 114 // प्राणीओनो देह छे मंदिर जेमनुं एवा आपने नमस्कार थाओ। ते मंदिरमां चैतन्यमूर्त्तिवडे चैत्यरूप आपने नमस्कार थाओ। दक्ष जनो वडे अविभेदपणे (अभेद ध्यानवडे) जोवाता एवा आपने नमस्कार 20 थाओ // 115 // निर्विकार अने निरंजन एवा आपने नमस्कार थाओ। योगी जनोने लक्ष्य, तथा जेमनुं खरूप व्यंजना वृत्तिथी जाणी शकाय तेवू नथी एवा आपने नमस्कार थाओ। अनुमान अने उपमान प्रमाणथी पण पर स्वरूपवाळा आपने नमस्कार थाओ // 116 // __स्थापना, द्रव्य अने नामात्मक एवा आपने नमस्कार थाओ। अमने (संसारी जीवोने) त्रणे काळमां 25 पवित्र करता एवा आपने नमस्कार थाओ। भव्य प्राणिओना भाग्यरूप आपने नमस्कार थाओ // 117 // श्रीयुगादीश्वर रूप हे प्रभो! आपने नमस्कार थाओ। श्रीअजितनाथ तथा श्रीसंभवनाथरूप हे प्रभो! आपने नमस्कार थाओ। हे नाथ ! श्रीसिद्धार्था माताना पुत्र श्रीअभिनंदन, आपने नमस्कार थाओ // 118 // 1. अहींथी सामान्य अरिहंत (आर्हन्त्य शक्ति) नी स्तुति होवाथी एक वचननो प्रयोग समजवो। 30

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