Book Title: Namaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 340
________________ [74-29] पण्डित-आशाधरविरचितं जिनसहस्रनामस्तवनम् // प्रभो भवाङ्गभोगेषु, निर्विष्णो दुःखभीरुकः / एष विज्ञापयामि त्वां, शरण्यं करुणार्णवम् // 1 // सुखलालसया मोहाद्, भ्राम्यन् बहिरितस्ततः। सुखैकहेतो मापि, तव न शातवान् पुरा // 2 // अद्य मोहग्रहावेशशैथिल्यात् किश्चिदुन्मुखः। अनन्तगुणमाप्तेभ्यस्त्वां श्रुत्वा स्तोतुमुद्यतः॥३॥ भक्त्या प्रोत्साह्यमानोऽपि, दूरं शक्त्या तिरस्कृतः। त्वां नामाष्ट(टान)सहस्रेण, स्तुत्वाऽऽत्मानं पुनाम्यहम् // 4 // जिन-सर्वज्ञ-यशाह-तीर्थकृन्नाथ-योगिनाम् / निर्वाण-ब्रह्म-बुद्धान्तकृतां चाष्टोत्तरैः शतैः॥५॥ तद्यथा 1 अथ जिनशतम् जिनो जिनेन्द्रो जिनगड्, जिनपृष्ठो जिमोत्तमः / जिनाधिपो जिनाधीशो, जिनस्वामी जिनेश्वरः॥६॥ जिननाथो जिनपतिर्जिनराजो जिनाधिराट् / जिनप्रभुर्जिनविभुर्जिनभर्ता जिनाधिभूः॥७॥ जिननेता जिनेशानो, जिनेनो जिननायकः। जिनेड् जिनपरिवृढो, जिनदेवो जिनेशिता॥८॥ जिनाधिराजो जिनपो, जिनेशी जिनशासिता। जिनाधिनाथोऽपि जिनाधिपतिर्जिनपालकः॥९॥ जिनचन्द्रो जिनादित्यो, जिनार्को जिनकुञ्जरः। जिनेन्दुर्जिनधौरेयो, जिनधुर्यो जिनोत्तरः // 10 // जिनवर्यो जिनवरो, जिनसिंहो जिनोद्वहः।। जिनर्षभो जिनवृषो, जिनरत्नं जिनोरसम् // 11 // जिनेशो जिनशार्दूलो, जिनायो जिनपुङ्गवः / जिनहंसो जिनोत्तंसो, जिननागो जिनाग्रणीः // 12 // जिनप्रवेकश्च जिनग्रामणीर्जिनसत्तमः। जिनप्रवर्हः परमजिनो, जिनपुरोगमः // 13 // जिनश्रेष्ठो जिनज्येष्ठो, जिनमुख्यो जिनानिमः / श्रीजिनश्चोत्तमजिनो, जिनवृन्दारकोऽरिजित् // 14 // .

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