Book Title: Namaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 298
________________ 244 नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत पञ्चादौ यत्पदानि त्रिभुवनपतिभिर्व्याहता पश्चतीर्थी, तीर्थान्येवाष्टषष्टिर्जिनसमय-रहस्यानि यस्याक्षराणि / यस्याष्टौ सम्पदश्चानुपममतमहासिद्धयोद्धैत शक्ति जर्जीयाल्लोकद्धयस्याभिलषित-फलदः 'श्रीनमस्कारमन्त्रः' // 5 // भोअणसमए सयणे, विबोहणे पवेसणे भए वसणे / पंच-नमुक्कारं खलु, समरिजा सव्वकालं पि // 6 // याताः प्रयान्ति यास्यन्ति, पारं संसार-वारिधेः / परमेष्ठि-नमस्कार, स्मारं स्मारं घना जनाः // 7 // . . स्वस्यैकच्छत्रतां विश्वे, पापानि विमृशन्तु मा / __ अघमर्षण-मन्त्रेऽस्मिन्, सति श्रीजिन-शासने // 8 // सिंहेनेव मदान्ध-गन्धकरिणो मित्रांशुनेव क्षपा ध्वान्तीघो विधुनेव तापततयः कल्पद्रुणेवाधयः। तायेणेव फणाभृतो घनकदम्बेनेव दावाग्नयः, सत्त्वानां परमेष्ठिमन्त्रमहसा वल्गन्ति नोपद्रवाः // 9 // 15 जेनां पहेलां पांच पदोने त्रैलोक्यपति श्रीतीर्थंकर देवोए पंचतीर्थी* तरीके कयां छे, जेना जिनसिद्धान्तनां रहस्य-सारभूत एवा अडसठ अक्षरोने अडसठ तीर्थो तरीके वखाण्यां छे, जेनी आठ संपदाओने अत्यन्त अनुपम एवी आठ सिद्धिओ तरीके वर्णवेली छे, जेनी शक्तिनी जगतमा जोड नथी अने जे बन्ने लोकने विषे इच्छित फल आपनार छे ते श्री नमस्कारमंत्र जय पामो // 5 // भोजन समय, शयन समय, जागवानो समय, प्रवेश समय, भय समय, संकट समय, वगेरे 20 सर्व समये पंच-नमस्कारनुं अवश्य स्मरण करो // 6 // परमेष्ठि-नमस्कारने वारंवार स्मरण करीने घणा लोको संसार-सागरना पारने पाम्या छे, पामे छे अने पामशे // 7 // श्री जिनशासनने विषे पापनो नाश करनार आ मंत्र विद्यमान छते “विश्वमा पोतानी एक छत्रता छे' एम पापो-दुष्कर्मो कदी पण न विचारे—(न माने)! // 8 // 25 सिंहथी जेम मदोन्मत्त गन्धहस्तिओ, सूर्यथी जेम रात्रिसंबंधी अंधकारना समूहो, चन्द्रथी जेम ताप-संतापनी परंपराओ, कल्पवृक्षथी जेम मननी चिंताओ, गरुडथी जेम फणीधर-विषधरो अने मेघ- . समुदायथी जेम दावानलो शान्त थाय छे, तेम श्री-पंच-परमेष्ठि-मंत्रनां तेजथी प्राणिओना उपद्रवो नाश पामे छे // 9 // ___ अरिहंतना आद्य अक्षर 'ग' थी अष्टापदतीर्थ, सिद्धना आद्य अक्षर 'सि' थी सिद्धाचल, आचार्यना 30 आद्य अक्षर 'भा' थी भाबूजी, उपाध्यायना आद्य अक्षर 'उ' थी उज्जयन्त (गिरनारजी) अने साधुना आद्य अक्षर 'स' थी सम्मेतशिखर, ए रीते पांच तीर्थों लई शकाय /

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