Book Title: Namaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 317
________________ 261 विभाग] जिबसहस्रनामस्तोत्रम् नमोऽनुत्तरस्वर्गिभिः पूजिताय, नमस्तन्मनःसंशयच्छेदकाय / नमोऽनुत्तरज्ञानलक्ष्मीश्वराय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 17 // नमस्ते धरित्रीव(व्येव) सर्वसहाय, नमस्तेऽन्तरङ्गारिभिर्दुस्सहायं / नमस्ते तपस्सत्यधूर्वहाय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 18 // नमस्ते शुभोपार्जितार्हत्पदाय, नमस्ते तृतीये भवे निश्चिताय / नमो धर्मसम्य फलावञ्चिताय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 19 // नमो नव्यदिव्योपभोगाभिधाय, नमस्तेषु तत्रापि वैरङ्गिकाय / नमो योगसात्म्यैकतासङ्गताय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 20 // नमस्ते भुवि स्वर्गलोकच्युताय, नमस्ते सतीकुक्षिकोशङ्गताय / / नमस्ते त्रिलोकोपकारोद्गताय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 21 // नमस्ते शुभस्वप्नसंसूचिताय, नमस्ते जनन्याप्तसद्दोहदाय / नमस्ते भवत्तद्वपुः सौष्ठवाय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 22 // 15 अनुत्तरविमानना देवो वडे पूजित एवा आपने नमस्कार थाओ। अनुत्तर विमानमा रहेला देवोना मनमां उत्पन्न थनारा संशयने छेदनारा आपने नमस्कार थाओ। अनुत्तर एवी ज्ञानलक्ष्मीना (केवळज्ञानना) स्वामी. एवा आपने नमस्कार थाओ // 17 // .. पृथ्वीनी जेम सर्वषह (सर्व परिषह-उपसर्गोने सहन करनार) आपने नमस्कार थाओ। अंतरंग शत्रओने दस्सह एवा आपने नमस्कार थाओ। तप अने सत्यरूपी धुराने वहन करवामां वृषभ समान आपने नमस्कार थाओ // 18 // पुण्यप्रकर्षथी अरिहंत पदने उपार्जन करनारा आपने नमस्कार थाओ। त्रीजे भवे तीर्थंकरपदने निश्चित (निकाचित) करनारा आपने नमस्कार थाओ। धर्मना सम्यक् फळथी अवंचित एवा आपने 20 नमस्कार थाओ // 19 // . .. नव्य (सुंदर) दिव्योपभोगने पामेला () एवा आपने नमस्कार थाओ (आ विशेषण त्रीजे भवे तीर्थकर नामकर्म निकाचित कर्या पछी प्राप्त थयेल देवपणाने अंगे छे)। देवभवमां पण भोगोथी विरक्त एवा आपने नमस्कार थाओ। योगोनी सात्म्यरूप एकताने पामेला आपने नमस्कार थाओ // 20 // स्वर्गमाथी च्यवीने पृथ्वीपर अवतरेला आपने नमस्कार थाओ। मनुष्यपणामां सती स्त्रीना 25 गर्भमा रहेला आपने नमस्कार थाओ। त्रिलोकना उपकार माटे उद्यत थयेला आपने नमस्कार थाओ // 21 // __ शुभ स्वप्नवडे सूचित अवतारवाळा आपने नमस्कार थाओ। जेमनी माताने शुभ दोहला उत्पन्न थया छे एवा आपने नमस्कार थाओ। माताना शरीरने सुखकारक एवा आपने नमस्कार थाओ॥२२॥ 30

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