Book Title: Namaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 244
________________ 10 15 194 नमस्कार स्वाध्याय संस्कृत यन्त्रं चिन्तामणिर्नाम, कलिकुण्डाख्ययन्त्रकम् / पश्चाराध्यपदं यन्त्र, गणभृद्वलयाभिधम् // 8 // पार्श्वचक्रं वीरचक्र, सिद्धचक्रं त्रिलोकयुक् / कर्मचक्रं योगचक्रं, ध्यानचक्रपिच्छेड(विच्छेद)कम् // 9 // भूतयन्त्र(चक्र) तीर्थचक्रं, जिनचक्रं वशीकरम् / ध्यानचक्रं मोक्षचक्र, श्रेयश्चक्रं सुशान्तिकृत् // 10 // . सर्वरक्षाकरं वृद्धमृत्युञ्जयसुनामकम् / लघुमृत्युञ्जयं नाम, मोक्षदं वाञ्छितप्रदम् // 11 // फलदं ज्वालिनीचक्र, शुभं चैवाम्बिकाचक्रम् / वरं चक्रेश्वरीचक्र, बृहच्छान्तिकचक्रकम् // 12 // यागमण्डलसचक्र, यज्ञचक्रं मनोहरम् / भैरवं चक्रमिन्द्राख्यामित्यादि सकलं बहु // 13 // यन्त्रराजागमोक्तं यत्, तदेतेन विना न च / सिद्धेन सिद्धयत्येव, नियमोऽस्ति जिनागमे // 14 // यस्य स्मरणमात्रेण, वराङ्गस्य भयं गतम् / द्वीपिनोऽथ तथा श्रेष्ठी, सुदर्शन अपि स्वयम् // 15 // भयमुक्तो बभूवास्य, प्रभावेन महाजनाः। द्वात्रिंशदभिधानास्ते, गता द्वीपान्तरं मुदा // 16 // , किमस्य वर्ण्य माहात्म्यं, जिह्वया चैकया खलु। कोटिजिह्वादिभिर्ब्रयाद् , गणेशोज किमुच्यते // 17 // (यंत्रोमां) चिन्तामणि नामनु, कलिकुंड नामन, पंचाराध्यपद नामर्नु, अने गणधरवलय नामर्नु यंत्र छे, (ए सिवाय) पार्श्वचक्र, वीरचक्र, सिद्धचक्र, त्रिलोकयुक् (त्रिलोकचक्र), कर्मचक्र, योगचक्र, बीजाना हानिकर ध्यानने छेदनार चक्र, भूतचक्र, तीर्यचक्र, जिनचक्र, वशीकरचक्र, ध्यानचक्र, मोक्षचक्र, शांतिने करनारं श्रेयश्चक्र, सर्वनी रक्षा करनारुं वृद्धमृत्युञ्जय नामक चक्र, मोक्ष अने वांछित आपनाएं लघु25 मृत्युंजय नमक चक्र, सफळ एबुं ज्वालिनीचक्र, शुभ एवं अंबिकाचक्र, श्रेष्ठ एवं चक्रेश्वरीचक्र, बृहत शांतिचक्र, सुंदर एवं यागमण्डलचक्र, मनोहर, यज्ञचक्र, भैरवचक्र अने इन्द्रचक्र वगेरे जे अनेक चक्रो 'यंत्रराज आगम' मां कहेला छे ते बधा आ नमस्कार मंत्र (यंत्र) ने साध्या विना सिद्ध थतां नथी अने ए सिद्ध यतांज बधां सिद्ध थाय छे, एवो जिनागममां नियम छे // 8-9-10-11-12-13-14 // एना स्मरणमात्रथी वरांगनो हाथीनो भय गयो अने श्रेष्ठी सुदर्शन पण स्वयं भयमुक्त 30 थया, आ (नमस्कार) ना प्रभावथी बत्रीश नामवाळा (1) महाजनो पण आनंदपूर्वक बीजा द्वीपमा गया // 15-16 // खरेखर, आनुं माहात्म्य एक जीमे कई रीते वर्णवी शकाय ? अहीं श्रीगणधर भगवान करोडो जिह्वाओ वडे कहे तो पण न कही शके, तो पछी अमे शी रीते कही शकीए ! // 17 // 20

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