Book Title: Namaskar Mantra Author(s): Fulchandra Shraman Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti View full book textPage 6
________________ मन्त्र के द्वारा किसी देव विशेष की दिव्यात्मा के साथ सम्बन्ध जोड़कर उसके द्वारा अभीष्ट कार्यो को सिद्ध किया जाता है। जैसे वैदिक परम्परा में गायत्री मन्त्र है । महर्षि विश्वामित्र ने इसकी ऐसी अक्षर-योजना की है कि उसके द्वारा साधक की आत्मा सूर्य-तेज के साथ तादात्म्य स्थापित करके अपनी अभीष्ट पूर्ति करती है। शैवों का मन्त्र "ॐ नमः शिवाय" है जिसका उच्चारण करते हुए शैव अपने को शिवशक्ति से सम्बद्ध कर लेता है । वैष्णव "ॐ नमो नारायणाय" का उच्चारण करते हुए नारायण रूप जलीय शक्ति के साथ अपने को सम्बद्ध करके अपने मनोरय-पूर्ति के मार्ग को प्रशस्त करता है। कहते हैं महर्षि बाल्मीकि को नारदजी ने 'राम' मन्त्र दिया था, परन्तु बाल्मीकि 'राम' के स्थान पर 'मरा-मरा जपते हुए वे पूर्ण-काम सर्व-समर्थ महर्षि बन गए। क्योंकि 'राम' यह भी एक मन्त्र है और मन्त्र का कोई अर्थ हो ही यह आवश्यक नहीं, क्योंकि मन्त्र ध्वन्यात्मक होता है और प्रत्येक ध्वनि में और उस ध्वनि के प्रकम्पनों में वातावरण, भावना और विचारों को बदलने की अद्भुत क्षमता होती है। यही कारण है कि भारतीय मनीषी शब्द को 'ब्रह्म' कहते हैं-ब्रह्म विराट है-ध्वनि की विराटता विज्ञान-सम्मत है, क्योंकि ध्वनि सेकिण्डों में लाखों मीलों का फासला तय करते हुए ब्रह्माण्ड को व्याप्त कर लेती है। दो]Page Navigation
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